गोरखपुर में बनी इस मशीन से ट्रेन बदलती है ट्रैक, जून में हुआ रिकॉड उत्पादन, जानिए कैसे करती है काम
रेलवे में आपने खूब सफर किया होगा. इस दौरान आपके मन में भी एक सवाल जरूर कौंधता होगा कि आखिर ट्रेन कैसे ट्रैक बदलती हैं. ट्रेन लूप लाइन से मेन लाइन पर जाते समय आप भी सोचते होंगे कि आखिर यह कैसे होता है. यह जानकार आपको हैरानी होगी कि जिस मशीन से यह संभव होता है, वह गोरखपुर में बनती है.
गोरखपुर: रेलवे में आपने खूब सफर किया होगा. इस दौरान आपके मन में भी एक सवाल जरूर कौंधता होगा कि आखिर ट्रेन कैसे ट्रैक बदलती हैं. ट्रेन लूप लाइन से मेन लाइन पर जाते समय आप भी सोचते होंगे कि आखिर यह कैसे होता है. यह जानकार आपको हैरानी होगी कि जिस मशीन से यह संभव होता है, वह गोरखपुर में बनती है.
बता दें कि ट्रैक बदलाव इलेक्ट्रिक प्वाइंट मशीन (ईपीएम) के जरिए होता है. यह मशीन पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर स्थित सिग्नल वर्कशॉप में बनती है. यही कारण है कि वर्कशॉप नार्दर्न रेलवे, वेस्टर्न रेलवे, वेस्ट सेंट्रल रेलवे, ईस्ट सेंट्रल रेलवे, ईस्टर्न रेलवे, साउथ सेंट्रल जैसे बड़े जोन को ईपीएम सप्लाई कर रहा है.
बता दें कि भारत में ज्यादातर दो रेलवे ट्रैक हैं, जिन्हें आप एक दूसरे के समानांतर दौड़ते हुए देखेंगे. एक को अप ट्रैक के रूप में जाना जाता है, और दूसरे को डाउन ट्रैक के रूप में जाना जाता है. जैसे ही कोई रेलवे स्टेशन आता है, वहां बहुत सारे ट्रैक दिखाई देते हैं. यह वह जगह है जहां से ट्रेन प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए एक ट्रैक से दूसरे ट्रैक पर चढ़ना शुरू कर देगी जहां से इसे रवाना होना है.
एक माह में 548 सेट तैयार
ज्यादातर काम जहां रेलवे में आउटसोर्स होने लगा है. वहीं सिग्नल वर्कशॉप ने अपनी उपयोगिता बनाए रखी है. इंजीनियरों और कर्मचारियों ने अपनी कार्यकुशलता बढ़ाते हुए जून महीने में 548 सेट ईपीएम का निर्माण कर दिया, जबकि यहां महीने भर का औसत उत्पादन 300 ईपीएम का है.
क्या है ईपीएम
ईपीएम (इलेक्ट्रिक प्वाइंट मशीन) ऐसी डिवाइस है, जो पटरियों के किनारे निर्धारित स्थानों पर लगाई जाती है. यह मशीन कंट्रोल रूम से ऑपेरट होती है. कंट्रोल ट्रेन को एक पटरी से दूसरी पटरी पर डालने के लिए इस मशीन का सहारा लेता है. मशीन को जैसे ही कंट्रोल रूम से कमांड मिलता है, वैसे ही यह ट्रेन का ट्रैक बदल देती है.
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