देवरिया: एक तरफ जहां देश में बुलेट ट्रेन का सपना सच होने जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी ट्रेन भी है जो सड़क पर चलने वाले टमटम (ई-रिक्शा) की स्पीड में चलती है. जी हां, आपको सुनकर हैरानी जरूर हो रही होगी, पर ये सच है. ये ट्रेन इतनी धीरे चलती है कि कोई भी शख्स इसे चलकर आराम से इसे पकड़ सकता है. इतना ही नहीं, जहां मन करे वहां उतर भी सकता है. 


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अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये ट्रेन है कौन सी? दरअसल, हम जिस ट्रेन की बात कर रहे हैं, उसका नाम है बरहजिया. ये ट्रेन उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में चलती है. इस ट्रेन के बारे में जानकर आप सोच रहे होंगे कि आज के समय में आखिर इसका क्या काम है? रेलवे ने ऐसी ट्रेन को बंद क्यों नहीं किया. आज इस आर्टिकल में हम आपको इस ट्रेन से जुड़े कुछ रोचक बातें बताने जा रहे हैं, तो आइये जानते हैं.... 


कहीं भी जाओ किराया मात्र 30 रुपये
ये ट्रेन पूर्वोत्तर रेलवे के सबसे छोटे रेलवे रूट में से एक 'भटनी-बरहज' पर चलती है. इस रूट पर पांच बोगी की एकमात्र यही पैसेंजर ट्रेन चलती है. यह रूट टोटल 31 किमी का है. इसमें सात स्टेशन पड़ते हैं. बरहजिया पैसेंजर ट्रेन भटनी, पिवकोल, सलेमपुर, देवराहा बाबा, सतरांव, सिसई गुलाब राय और बरहज स्टेशन जाती है. सबसे खास बात यह है कि इन सभी स्टेशनों का किराया 30 रुपये है. हालांकि, पहले यह किराया 10 रुपये हुआ करता था लेकिन बाद में 20 रुपये बढ़ा दिए गए. इसका मतलब है कि अब भी आप केवल 30 रुपये में इस रूट पर कहीं भी सफर कर सकते हैं. जानकारी के मुताबिक, इस ट्रेन के लिए रोजाना औसतन 300-400 टिकट बिकते हैं. 


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आज भी ड्राइवर और गार्ड बंद करते हैं रेलवे क्रॉसिंग का फाटक
बरहजिया हफ्ते के 6 दिनों में कुल चार फेरे लगाती है. रविवार को सिर्फ एक ही चक्कर चलती है. इस रूट में एक और बात है, जो इसे खास बनाती है. दरअसल, इस रेल रूट पर देवराहा बाबा और सतरांव स्टेशन के बीच एक रेलवे क्रॉसिंग चकरा ढाला पड़ती है. इस क्रॉसिंग पर कोई गेटमैन तैनात नहीं है. ऐसे में ड्राइवर और गार्ड ही ढाला के पहले ट्रेन रोककर फाटक बंद करते हैं और फिर पार कराने के बाद फाटक खोलकर ट्रेन रवाना करते हैं. टमटम की रफ्तार से चलने वाली ये ट्रेन रास्ते भर किसी रोडवेज बस या टैक्सी की तरह सवारियों को उतारते और बैठाते हुए अपना सफर तय करती है. 


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साल 1896 में अंग्रेजों ने चलाई थी बरहजिया 
दरअसल, देवरिया जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे बरहज बाजार स्थित है. ब्रिटिश काल में यह बाजार कारोबार की दृष्टि से बड़ा केंद्र हुआ करता था. यहां पर खांड़सारी और दाल की कई बड़ी मिलें थीं. इसके अलावा शीरा चट्टा का कारोबार भी यहीं से होता था. धीरे-धीरे बरहज लोहे के कारोबार के लिए भी मशहूर हो गया. यहां की बनी तिजोरी आज भी काफी फेमस है. पहले यहां जलमार्ग के जरिए व्यापार हुआ करता था. लेकिन साल 1896 में अंग्रेजों ने इसे रेल मार्ग से भी जोड़ दिया. अंग्रेजों ने बरहज से भटनी तक रेलवे लाइन बिछाया. ताकि बरहज को देश के अन्य प्रमुख शहरों से जोड़ा जा सके. 


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जब बरहजिया के बंद होने की भनक लगते ही सड़कों पर उतर आए थे लोग 
बता दें कि रेलवे ने घाटे को देखते हुए साल 2013 में इस ट्रेन को बंद करने का फैसला लिया था. लेकिन जैसे ही स्थानीय लोगों को पता चला, वैसे ही बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया. रेलवे के इस फैसले के खिलाफ व्यापारी, छात्र, पॉलिटीशियन और तमाम संगठन सड़क पर उतर गए. लोगों का विरोध और आक्रोश देखते हुए रेलवे ने अपना फैसला वापस ले लिया था.


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