वाराणसी: अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियों को जानने में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह खबर आपको जरूर अच्छी लगेगी. यूपी में आज भी ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते होंगे. इनमें मुगलकालीन किस्से भी शामिल हैं. ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं. यूपी के जिलों की खास बात यह है कि हर जिले की एक अलग विशेषता है, जो सभी जिलों को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है. 


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प्राचीन शहर है काशी
इसी क्रम में आज हम यूपी की प्राचीन नगरी वाराणसी के बारे में बात करेंगे. वाराणसी शहर कई चीजों से जाना जाता है. वाराणसी में रेशम का कारोबार सदियों पुराना है. यहां की सिल्क साड़ियां सिर्फ यूपी में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अपना जादू भिखेरा है. आज इस खबर में जानेंगे वाराणसी के इस उद्योग से जुड़ी हर एक दिलचस्प बात...


कई चीजें है फेमस
वैसे तो वाराणसी कई चीजों के लिए फेमस है. जैसे- बनारसी पान, इस शहर का खाना, गंगा घाट, मंदिर आदि. ऐसे में वाराणसी के नाम पर लोकप्रिय बनारसी रेशम साड़ी भव्यता और कुलीनता का प्रतीक है. यह सदियों से देश में बेहतरीन साड़ियों में से एक मानी जाती हैं. रेशम की साड़ियां अपने सोने और चांदी के ब्रोकैड, जरी के काम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं.



रेशम से बनती हैं साड़ियां
यह साड़ियां बारीक बुने हुए रेशम से बनती हैं. इसके साथ जटिल डिजाइन से सजाई जाती हैं. इन साड़ियों की विशेषता उनके मुगल प्रेरित डिजाइन और जटिल फुल और पत्तेदार रूपों में गुथाई जाती है. यह अपने सोने के काम, छोटे विवरण, कॉम्पैक्ट बुनाई, पैलस, जाल (पैटर्न की तरह नेट), और मीना काम के लिए भी जानी जाती हैं. वाराणसी रेशम की काफी ज्यादा मांग है. रेशम का काम घर के सामान, रेशम के कपड़े और अन्य उपयोगिता उत्पादों में भी इस्तेमाल किया जाता है. 


कई नामों से जाना जाता है शहर
वाराणसी कई नामों से भी जाना जाता है. जैसे-वाराणसी, बनारस और काशी. बनारस दुनिया के सबसे पुराने आवासीय शहरों में से एक है. हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वाराणसी का महत्व अद्वितीय है. काशी घूमने, यहां की संस्कृति और कला को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं.  यह भगवान शिव की नगरी है. काशी की भूमि हिंदुओं के लिए कई सालों से परम तीर्थ स्थान रहा है.



देश- विदेश से लोग यहां गंगा आरती देखने आते हैं. यहां के मंदिरों में भगवान के दर्शन करते हैं. हिंदुओं का मानना है कि वाराणसी की भूमि पर जिन लोगों की मृत्यु होती है, वे जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से स्वतंत्रता प्राप्त कर लेते हैं. माना जाता है कि वाराणसी की गंगा में प्राणियों के पापों धोने की शक्ति है. 


इन चीजों के लिए भी है प्रसिद्ध
वाराणसी प्राचीन काल से ही कुछ बेहतरीन हस्तशिल्प के लिए एक प्रमुख केंद्र रहा है. साथ ही काशी को हस्तशिल्प के रूप में कई बार सम्मानित किया गया है. इस शहर का सबसे प्रसिद्ध शिल्प रेशम बुनाई है. स्थानीय शिल्पकार द्वारा उत्पादित 'बनारसी साड़ी' न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में काफी पसंद की जाती है. सिल्क के साथ ही इस शहर के पीतल के बर्तन, हाथीदांत का काम, तांबे के बने पदार्थ, ग्लास चूड़ियों, लकड़ी, पत्थर, मिट्टी के खिलौने और उत्तम सोने के आभूषण जैसे अन्य कई शिल्प प्रसिद्ध है. 



आपको बता दें, वाराणसी जिले में ग्लास मोती क्लस्टर, सिल्क ब्रोकैड क्लस्टर, हाई-टेक सिल्क बुनाई और डिजाइनिंग क्लस्टर, हैंडलूम क्लस्टर, ईंटों का विनिर्माण, स्टोन कार्विंग क्लस्टर और वुड क्लस्टर भी मौजूद हैं. वहीं, शहर में ऊनी, रेशम और कृत्रिम थ्रेड आधारित वस्त्र, रेडीमेड गार्मेंट और कढ़ाई, तेल मिल
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कृषि, सूती कपड़े, जूट, लकड़ी आधारित फर्नीचर, पेपर उत्पाद, चमड़ा, रासायनिक, रबर,  प्लास्टिक, खनिज, धातु, अभियांत्रिकी इकाइयां, विद्युतीय मशीनरी और परिवहन उपकरण साथ ही रिपेयरिंग और सर्विसिंग के लघु उद्योग हैं. 


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एक वक्त था जब रेशम की साड़ियों का कारोबार काफी गिरने लगा था. जिसे फिर गति देने की पहल शुरू की गई. सरकार ने ओडीओपी योजना के अंतर्गत जिलों में चिन्हित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए 50 लाख तक के लोन का प्राविधान किया.  इससे दुकान या फैक्ट्री लगाने का काम किया जा सकता था.  प्रदेश सरकार लगातार इसपर काम कर रही है. ताकि किसी भी गरीब, मजदूर को बेरोजगारी से दूर नहीं होना पड़े. 


पीएम ने की थी तारीफ
काशी की रेशम की साड़ियों को लेकर पीएम मोदी ने भी तारीफ की है. उन्होंने कहा कि पिछले 6-7 सालों में बनारस के हैंडीक्राफ्ट और शिल्प को मजबूत करने की दिशा में काफी काम हुआ है. उन्होंने कहा कि बनारस का जिक्र हो और बनारसी साड़ी या बनारसी सिल्‍क का जिक्र न हो, ऐसा होना असंभव है. बनारस और बनारसी सिल्‍क एक-दूसरे की पहचान हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं. 


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एक साड़ी को बनाने में लगता है इतना समय
बता दें, बनारसी सिल्‍क को पिछले कई सालों से शाही अंदाज का प्रतीक माना जाता है. हर बनारसी साड़ी को असली सोने और चांदी के धागों से तैयार किया जाता है. एक साड़ी को तैयार करने में लगभग 6 महीने से लेकर 3 साल तक का समय लगता है. बनारसी सिल्‍क को भारत के महान इतिहास के तौर पर भी देखा जाता है. कहते हैं कि 17वीं सदी में यहीं से सिल्‍क ब्रोकेड का काम शुरू हुआ था. 18वीं और 19वीं सदी में ये और बेहतर होता चला गया. मुगल काल के समय यानी करीब 14वीं सदी में ब्रोकेड की बुनाई के लिए सोने और चांदी के धागों को वरीयता दी जाने लगी थी. धीरे-धीरे ये धागे बनारस और बनारसी सिल्‍क की पहचान बन गए.


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3 कारीगर मिलकर बनाते हैं साड़ी
पारंपरिक बनारसी साड़ी इस समय एक कुटीर उद्योग के तौर पर स्‍थापित हो चुकी है. इस उद्योग ने करीब 1.2 मिलियन लोगों को रोजगार दिया है. ये लोग हैंडलूम सिल्‍क इंडस्‍ट्री का हिस्‍सा है. एक बनारसी साड़ी को तैयार करने में लगभग 3 कारीगर लगते हैं.  ये कारीगर पावरलूम का प्रयोग करते हुए साड़ी को बुनते हैं. एक कारीगर सिल्‍क की बुनाई करता है, तो एक कारीगर सिल्‍क को रंगने का काम करता है. जबकि एक कारीगर पर सिल्‍क के बंडल को संभालने का जिम्‍मा दिया जाता है जो एक घेरे में तैयार होता जाता है. 


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