कौशांबी: भारत में इस बार मुहर्रम (Muharram 2022) का त्योहार 8 या 9 अगस्त को मनाया जाएगा. यूपी के कौशांबी जिले में इसकी तैयारियां तेज हो गई हैं.  कौशांबी जिले में एक कस्बा ऐसा भी है जहां के 70 प्रतिशत लोग ताजिया बनाने का काम करते हैं. यहां पर पूरे साल ताजिया बनाई जाती है. इनके हाथ की बनाई ताजिया देश ही नहीं विदेशों मे भी मशहूर है और यहां की खूबसूरत ताजिया नीदरलैंड के कितरोपर्ण म्यूजियम (Kiroparn Museum of the Netherlands) में आज भी रखी हुआ है.


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सिराथू तहसील की ताजिया विदेशों में भी है फेमस 
मुहर्रम का चांद देखने के बाद मुसलमान खासकर शिया समुदाय के लोग इमाम बारगाहों को आलम से सजाते हैं, जिसमें ताजिया भी रखी जाती है. अमूमन लोग 9 तारीख की रात को ताजिया रखते हैं और 10 को कर्बला में दफनाया जाता है. हिंदुस्तान में मुहर्रम के दिनों में ताजिया उठाने की परंपरा है. यूं तो ताजिया जनपद में कई जगहों पर बनाई जाती है, लेकिन सिराथू तहसील के कड़ा कस्बे में बनाई गई ताजिया की खूबसूरती देखते बनती है. यही कारण है कि यहां की ताजिया अपने मुल्क के अलावा सात समंदर पार नीदरलैंड के म्यूजियम में जो कि दस साल पहले भेजी गई थी, रखी हुई है.


ऐसे तैयार किया जाता है ताजिया 
सिराथू तहसील के कड़ा कस्बे में ताजिया बनाने का काम कई पीढ़ियों से हो रहा है. ये लोग जब तक ताजिया बनाकर ताजियेदारों को सौप न दें उन्हें सुकून नहीं मिलता है. रंग -बिरंगे कागजों और खूबसूरत सजावटी सामानों से तैयार ताजिया अहम स्थान रखता है. ताजिया तैयार करने वाले कारीगर का कहना है कि इसके निर्माण से उन्हें सुकून मिलता है. ताजिया को बांस की खपचियों के ऊपर चमकदार कागजों के इस्तेमाल से आकार दिया जाता है. इसमें अभ्रक, गंधक के साथ रंग-बिरंगी चमकदार पन्नियां व सजावट के कई दूसरे समान लगाए जाते है. ऐसी कला जो लोग देखते ही रह जाते हैं. इसी खासियत के चलते दूर-दूर से लोग कड़ा में बने ताजिया लेने आते हैं. यह शोहरत ही है जो सात समंदर पार ले गई और नीदरलैंड के म्युजियम में नमूने के तौर पर कड़ा में बनी ताजिया रखी गयी है. कारीगर अपने इस हुनर से इमाम हुसैन को सच्ची श्रधांजलि देते हैं.


4 से 6 महीने में तैयार होती हैं ताजिया 
एक ताजिया चार से छः महीने तक में बनकर तैयार होती है. इसे बनाने में लागत भी 35 से 40 हजार तक आती है, लेकिन महगाई ने लोगों की इस कदर कमर तोड़ी है कि इस बार ताजियादार इसकी सही कीमत नहीं दे पा रहे हैं, जिसके चलते ताज़िया बनाने वाले इन कारीगरों को काफ़ी मश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. दो साल पहले इसी ताजिए से पूरे साल का खर्चा आसानी से चल जाता था, लेकिन इस बार ताजिया कारीगरों के सामने आर्थिक संकट खड़ा है.


हिंदुस्तान में ऐसे हुई ताजिया की शुरुआत 
जानकर बताते है कि ताजिया विशुद्धरूप से हिंदुस्तान की परंपरा है. इसकी शुरुआत तैमूर लंग ने की थी. तैमूरलंग मुहर्रम के दिनों में इमाम हुसैन के रौज़े की जयरत (दर्शन) करने जाया करता था, लेकिन उसको दिल की बीमारी हो गयी और हकीमों ने उसको ज़्यादा चलने से मना कर दिया, जिसके बाद तैमूरलंग को खुश करने के लिए उस समय के कारीगरों ने इमाम हुसैन के रौज़े की नकल कर ताज़िया बनाई, जिससे तैमूरलंग बहुत प्रभावित हुआ. धीरे धीरे यहां परंपरा बन गई, जो आज भी कायम है. 


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