Uttarkashi : दही और छाछ की होली खेलकर भगवान को कहा Thank you, जानिए बटर फेस्टिवल की कहानी
उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है. यह प्रदेश खनिज और वन संपदा से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक विरासत से भी संपन्न है. इन दिनों उत्तरकाशी में अढूंडी उत्सव (बटर फेस्टिवल) की धूम है. पहले इस अढूंड़ी उत्सव को गाय के गोबर से खेला जाता था लेकिन अब अढूंडी उत्सव को टूरिज्म से कनेक्ट कर दिया गया है. इस दौरान गांव वाले दही और छाछ की होली खेलते हैं. आइए जानते हैं क्यों इसे प्रकृति को धन्यवाद कहने का पर्व कहा जाता है.
हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी: उत्तरकाशी के भटवाड़ी के दयारा बुग्याल में बुधवार को अनूठी होली खेली गई. 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पर्यटल स्थल पर देश और दुनिया भर से लोग आढूडी उत्सव (बटर फेस्टिवल) मनाने आते हैं. स्थानीय लोगों ने आढूडी उत्सव के दौरान (Butter Festival) दूध, मट्ठा और मक्खन से बड़े धूमधाम से होली खेलते हैं. इस ऐतिहासिक बटर फेस्टिवल में सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज (Satpal Mahraj) को बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लेना था लेकिन खराब मौसम के कारण सीएम का दौरा रद्द हुआ.
सीएम ने दी शुभकामनाएं
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून से ही बटर फेस्टिवल आयोजन समिति और देश विदेश से आए पर्यटकों को अपनी शुभकामनाएं दी. दयारा बुग्याल में गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान ने बटर फेस्टिवल का विधिवत उद्घाटन किया. वहीं देश-विदेश से आए हजारों पर्यटकों एवं स्थानीय लोगों ने उत्सव में एक दूसरे पर मट्ठा मक्खन और दूध लगाकर उत्साह से बटर फेस्टिवल को मनाया. प्रकृति की ओर से इंसान को मिले उपहार के लिए आभार जताने के उद्देश्य से इस उत्सव का आयोजन रैथल गांव की दयारा पर्यटन उत्सव समिति व ग्राम पंचायत समिति करती है. बताया जाता है कि रैथल के स्थानीय लोग गर्मियों में अपने पशुओं के साथ दयारा बुग्याल समेत गोई चिलापड़ा में अपना बसेरा बना लेते हैं. यहां उन्हें उंचे बुग्यालों में उगने वाली घास से काफी मदद मिलती है. इससे दुग्ध उत्पादन बढ़ता है. यही वजह है कि ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में ठंड आने से पहले ही गांव वाले वापस लौटने लगते हैं. इस दौरान वह अपने मवेशियों की सुरक्षा के लिए प्रकृति के देवता का अभिनंदन करने के लिए आढूडी उत्सव का आयोजन करते हैं.
रासो-तांदी नृत्य किया
बटर फेस्टिवल के दौरान क्षेत्रीय लोगों और महिलाओं ने पहाड़ी परिधान में जमकर रासो-तांदी नृत्य किया. दयारा बुग्याल बड़ा ही खूबसूरत क्षेत्र है जो 18 किलोमीटर में फैला है. यहां हर तरफ हरियाली ही हरियाली है. मानो प्रकृति का स्वर्ग यहीं पर है. रैथल गांव के ग्रामीण प्रतिवर्ष भाद्रपद की संक्रांति को दायरा बुग्याल में इस उत्सव का आयोजन करते हैं.