अरविंद मिश्रा/लखनऊ: मेरठ (Meerut) की रहने वाली 88 साल की इकबाल कौर उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जब उन्हें देखभाल की कहीं अधिक जरुरत है. पिछले कुछ सालों से वह दिल्ली में अपनी बेटी कवंलजीत कौर के यहां रहती हैं. जरुरत और सुविधा के मुताबिक जब मन करता है दूसरी बेटियों के यहां रहने चली जाती हैं. उनकी हर बिटिया को मां का बेसब्री से इंतजार रहता है. इकबाल कौर के भले ही कोई बेटा नहीं है, लेकिन उनकी बेटियों ने कभी उनको इस बात का एहसास नहीं होने दिया. बेटियां अपनी मां की सेहत और मनोरंजन समेत हर बात का ख्याल रखती हैं. बच्चे और पोते न सिर्फ उनके साथ समय बीताते हैं बल्कि उन्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं होने देते. इकबाल कौर ने पहले अपनी बेटियों को पालपोस कर बड़ा किया अब बेटियां अपना कर्तव्य निभा रही हैं. यही भारतीयता का संस्कार है. बुजुर्गों की देखभाल की यह एक सुंदर तस्वीर है. लेकिन देश में न जाने कितने बुजुर्ग ऐसे हैं जिनके बच्चों के पास उनकी देखभाल के लिए समय नहीं है. वह या तो वृद्धाश्रम (Old Age Home) में रख दिए जाते हैं, या फिर घर में किसी कोने अकेलेपन और अवसाद का शिकार होते रहते हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बुजुर्गों के खिलाफ बढ़ रहे अपराध
हालात यह हैं कि अब बुजुर्गों के साथ ठगी, धोखाधड़ी और बदसलूकी की घटनाएं बढ़ रही हैं. एनसीआरबी (NCRB) के मुताबिक 2021 में देश में बुजुर्गों के विरुद्ध 26110 घटनाएं हुईं. अगर इन तथ्यों की राज्यवार तुलना करें तो सबसे अधिक 6190 घटनाएं महाराष्ट्र में हुईं. यूपी इस लिस्ट में 12वें नंबर पर रहा. यहां 423 घटनाएं दर्ज की गईं. महानगरों में अकेले रहने वाले बुजुर्ग दंपतियों के खिलाफ लगातार बढ़ते अपराधों ने राज्य सरकारों और पुलिस प्रशासन को भी चिंता में डाल दिया है. बुजुर्गों की सुरक्षा के तमाम उपायों के बावजूद ऐसी घटनाएं कम होने के बजाय तेजी से बढ़ रही हैं.ऐसे में बुजुर्गों के प्रति हमें एक ओर जहां अपने कर्तव्यों को याद करना होगा वहीं उन्हें उनके अधिकार भी दिलाने होंगे. बुजुर्गों के प्रति जागरुकता प्रसार के लिए ही 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जा रहा है. 


संयुक्त राष्ट्र संघ ने जारी की थीम
अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) की पहल पर हुई है. यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली में 14 अक्टूबर 1990 को बुजुर्गों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किए जाने का प्रस्ताव रखा गया था. काफी विचार-विमर्श के बाद 1 अक्टूबर को अंर्तराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस घोषित किया गया. यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNPF) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2050 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या बढ़ कर तीन गुनी हो जाएगा. ऐसे में बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान निकालना होगा.


बुजुर्गों की जिंदगी को बनाना होगा आसान
प्रसिद्ध स्पेशल एजुकेटर डॉ हरवीन कौर (Dr Harveen Kaur) के मुताबिक बुजुर्गों के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं. हमारे आसपास का जो पर्यावरण है, उसमें बुजुर्गों के लिए कई बाधाएं हैं.उदाहरण के लिए यदि बुजुर्गों को घर से कहीं बाहर जाना हो तो परिवहन व्यवस्था वृद्ध व दिव्यांगों के अनुकूल नहीं होती है. यह तभी मुमकिन है जब सरकार, प्रशासन और लोग बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील हों.  इश्यू एंड कंसर्न ऑफ एल्डर्ली पीपुल इंन इंडिया पुस्तक में प्रकाशित अपने रिसर्च आर्टिकल में डॉ कौर लिखती हैं कि सार्वजनिक स्थलों व इमारतों को सीनियर सीटिजन (Senior Citizen) के अनुकूल बनाना होगा. हैंड रेल, लिफ्ट, वॉश बेसिन, कुर्सियों, सीढ़ियों,लाइटिंग समेत हर संरचना बुजुर्गों को ध्यान में रखकर तैयार हो. विदेशों में इस तरह की सुविधाएं विकसित की गई हैं. वह कहती हैं कि दैनिक जीवन से जुड़ी बहुत सी सेवाएं बुजुर्गों के लिए डिजिटल स्वरुप में मुहैया कराई जा सकती हैं. असिस्टिव टेक्नोलॉजी (Assistive Technology) के विस्तार से बुजुर्गों की जिंदगी को सुविधाजनक बनाया जा सकता है. बुजुर्गों के अनुकूल घर और सेवाओं के विस्तार पर आशियाना हाउसिंग लिमिटेड के जेएमडी अंकुर गुप्ता कहते हैं कि शहरों में अधिक सीनियर लिविंग कम्युनिटीज का निर्माण करना होगा. हमें ऐसे घर और सार्वजनिक स्थल बनाने होंगे जो बुजुर्गों को ईज ऑफ लाइफ का एहसास करा सकें. उन्हें किसी सुविधा या सेवा को हासिल करने में कोई दिक्कत न हो. अंकुर गुप्ता के मुताबिक सीनियर लिविंग समुदाय स्थल पर योग और सांस्कृतिक केंद्र के साथ स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित करनी होगी.


सीनियर सीटिजन को मिले कानूनी अधिकार


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिसंबर 2018 में केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए 2007 में बने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कानून केका सख्ती से पालन होना चाहिए.


कोई भी सीनियर सिटीजन जिनकी उम्र 60 साल या उससे अधिक है चाहे वे दत्तक माता-पिता हैं, चाहे वे सौतेले माता-पिता हैं या सगे अभिभावक हैं, यदि वह अपने भरण-पोषण में असमर्थ हैं तो वह अपने वयस्क बच्चों या रिश्तेदारों से भरण-पोषण हासिल करने के लिए आवेदन कर सकते हैं.


पोषण व कल्याण अधिनियम-2007 के मुताबिक यह भी सख्त कानून है कि यदि किसी सीनियर सिटीज़न की उसके परिवार द्वारा अनदेखी की जाती है, उनके साथ हिंसा की जाती है या घर से निकाल दिया जाता है तो यह एक गंभीर अपराध के तहत उन पर पांच हजार रुपये का जुर्माना और 3 महीने की कैद या दोनों हो सकते हैं.


ऐसे सीनियर सीटिजन जिनका कोई नहीं है, उनके लिए राज्य सरकार वृद्धा आश्रम खोलें.