श्याम तिवारी/कानपुर: कानपुर में आयकर विभाग के अधिकारी की मौत के बाद उनके शव को डेढ़ साल तक घर में रखने के मामले में रहस्य गहराता जा रहा है. बॉडी को इस तरह से संरक्षित रखने के क्या उपाय किए गए. इसकी मिस्टी सॉल्व नहीं हो सकी है. वहीं पुलिस भी लाश को डेढ़ साल तक रखने के पीछे का कारण पता लगाने में जुट गई हैं. हैरानी की बात यह है कि आयकर अधिकारी के परिजन यह मानने को तैयार नही हैं कि उनकी मौत हुई थी. अपनी तरह का यह अनोखा केस जहां चिकित्सकों के लिए पहेली बना है. वहीं पुलिस के लिए भी सिर दर्द साबित हो सकता है. मेडिकल साइंस के जानकारों का कहना है कि यह अपने आप में एक रेयर केस है. 


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किसी को शव के साथ महीनों रहने के कई मामले आपने सुने होंगे लेकिन कानपुर में शव के साथ एक दो नहीं बल्कि छह लोग डेढ़ साल तक रहे. इतना ही नहीं स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मृतक के घर पहुंच कर उसे अस्पताल पहुंचा और दोबारा मौत की पुष्टि की. इसके बाद भी परिजन सच को मानने को तैयार नहीं हैं.


गौरतलब है कि अहमदाबाद में आयकर विभाग में तैनात विमलेश कुमार की मौत 21 अप्रैल 2021 को हो गई थी. कोरोना काल में कार्डिएक रिस्पेट्री सिंड्रोम के चलते उनकी मौत हुई थी. जिस अस्पताल में मौत हुई उसके डॉक्टर ने बकायदा लेटर पैड पर मृत्य होना और उसका कारण लिख कर दे दिया. इसके बाद जब शव के अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही थी. तभी किसी ने यह कह दिया कि इनकी तो नब्ज चल रही है. जिसके बाद परिजनों ने अंतिम संस्कार से इंकार कर दिया औऱ शव को घर में ही रख लिया. तब से वह शव के साथ रह रहे थे और ऐसा व्यवहार कर रहे थे कि मानों विमलेश अभी जिन्दा हो. बकायादा शव को नहलाया जा रहा था. गंगा जल से शव की सफाई की जा रही थी. विमलेश के माता पिता का कहना है कि उनके बेटे की मौत हुई ही नहीं. डेढ़ साल बाद भी उसकी सांसे चल रही थीं लेकिन प्रशासन ने उनका अंतिम संस्कार करवा दिया.


दरअसल विमलेश की मौत के बाद अहमदाबाद आयकर विभाग को यह बताया गया कि विमलेश अभी जिंदा है और वह कोमा में है. यही बात मोहल्ले के लोगों को भी बतायी गयी. एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी विमलेश के बारे में कोई ठोस जानकारी विभाग को उपलब्ध नहीं हो पा रही है. ऐसे में आयकर विभाग के अधिकारियों ने कानपुर जिला प्रशासन के पत्र लिया. जिसके बाद डीएम के आदेश पर एक टीम ने विमलेश के घर जा कर यह तस्दीक की कि विमलेश की मौत डेढ साल पहले ही हो चुकी है. परिजनों को टीम ने कहा कि वह बेहतर इलाज के लिए विमलेश को हैलट अस्पताल ले जा रहे हैं. जहां विमलेश के शव का ईसीजी करा कर परिवार वालों को विश्वास दिलाने का प्रयास किया गया कि विमलेश अब इस दुनिया में नहीं है.

वहीं मेडिकल के जानकारों का कहना है कि कोई भी ऐसा कारण नही हैं कि शव खराब नहीं हो और अंगों में सड़न न हो. मेडिकल कॉलेज के एनाटोमी विभाग के प्रोफेसर डॉ प्रमोद ने बताया कि ऐसा हो ही नहीं सकता की शव से बदबू नहीं आई हो. प्यूट्रिफिकेशने के प्रॉसेस के दौरान बदबू आएगी ही. कम तापमान पर ऐसी चलाने औऱ हवन सामज्ञी या सेंटेड अगरबत्ती जैसी चीजें जला कर रख देने से बदबू पता नहीं चली होगी. उन्होंने कहा कि मौत हुई है तो शरीर डिकम्पोज्ड जरूर होगा. जब शरीर सूख जाता है तो उसमें बदबू ही आती है.वहीं मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ संजय काला ने कहा कि विमलेश का शरीर ममिफाइड हो चुका था.


वहीं पुलिस के लिए विमलेश की मौत के बाद उसका शव इस तरीके से रखा जाना एक बड़ी पहेली बन गया है. फॉरेन्सिक टीम भी यह पता लगाने का प्रयास कर रही है कि कैसे डेढ़ साल तक बॉडी को संरक्षित रखा गया. पुलिस के अधिकारी प्रथम दृष्ट्या इसे अंधविश्वास का मामला मान रहे हैं. हालांकि उनका कहना है कि तमाम दूसरे सम्भावित एंगल से भी मामले की जांच कर हकीकत पता लगाने का प्रयास करेंगे. 


मनोरोग का शिकार हो सकता है पूरा परिवार- मनोचिकित्सक

मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ गणेश शंकर ने कहा कि यह अपने आप में एक अनोखा केस है. इस तरह के केस बहुत कम देखे गए हैं. प्रथम दृष्टया यह केस शेयर्ड डिलीवरी डिसऑर्डर या शेयर्ड साइकॉटिक डिसऑर्डर नाम की बीमारी का प्रतीत होता है. यह एक ऐसी बीमारी है जो बहुत कम लोगों को होती है.इस बीमारी में एक शख्स अपनी मानसिक स्थिति से नियंत्रण खो देता है. वह अन्य लोगों को भी इसके प्रभाव में ले लेता है. जिससे वह लोग भी उसी बात पर भरोसा कर लेते हैं, जिसका सच्चाई से दूर दूर तक नाता नहीं होता है. उनका मानना है कि यह बीमारी परिवार के लिए भी घातक साबित हो सकती है क्योंकि परिवार के लोग डेढ़ साल तक शव के साथ रहे हैं. वह एक ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं जिसके बारे में उन्हें खुद भी जानकारी नहीं है.