पौड़ी गढ़वाल: उत्तराखंड में यातायात से होने वाले प्रदूषण से जल्द राहत मिलेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि एनआईटी उत्तराखंड ने ऊर्जा कुशल ई-रिक्शा हेतु तकनीकी का आविष्कार किया है. साथ ही इसे पेटेंट कराने के लिए दिया गया था. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, उत्तराखंड के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. प्रकाश द्विवेदी, डा0 सौरव बोस एवं उनके दो शोध छात्रों ने ये कमाल कर दिखाया है. बता दें कि उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के लिए ऊर्जा कुशल ई-रिक्शा के लिए एक एकीकृत कनवर्टर का आविष्कार किया है, जिसे पेटेंट भी मिल चुका है. आइए बताते हैं पूरा मामला.


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ई-रिक्शा की पावर को अधिक बढ़ा देता है कनर्वटर
आपको बता दें कि ये पेटेंट केंद्र सरकार के पेटेंट कार्यालय ने पेटेंट अधिनियम, 1970 के प्रावधान के अनुसार दिया है. इसकी वैधता 20 वर्षा के लिए होगी. बता दें कि पर्वतीय क्षेत्रों में इलेक्ट्रिक ई रिक्शा का चलना मुश्किल है. ऐसे में एनआईटी के छात्रों ने ऐसा कनर्वटर बनाया है, जो ई रिक्शा की पावर को अधिक बढ़ा देता है. कनर्वटर की मदद से पर्वतीय क्षेत्रों की चढ़ाई वाली सड़कों पर भी ये आसानी से चल सकता है. एनआईटी उत्तराखण्ड के डायरेक्टर प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने बताया कि भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा किसी शोध को मान्यता देना एक बड़ी उपलब्धि है.


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ये है इंटीग्रेटेड कनवर्टर की शुरुवाती कीमत
आपको बता दें कि इस पेटेंट की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और व्यावसायीकरण की प्रक्रिया अभी चल रही है. वहीं, कनर्वटर बनाने वाले प्रोफेसर का कहना है कि इस टेक्नोलॉजी  में इंटीग्रेटेड कनवर्टर की शुरुवाती कीमत 6000 रुपये है. परन्तु जब इसका भारी मात्रा में प्रोडक्शन किया जाएगा, तो ये 3000 रुपये में भी उपलब्ध हो सकता है. इस टेक्नोलॉजी का आविष्कार पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिए किया गया है. यह आविष्कार पहाड़ी क्षेत्रों में लोकल यातायात के लिए प्रदूषण रहित परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराने एवं नए रोजगार सृजित करने में लाभदायक होगा.