Uttarkashi: 70 साल पुरानी गढ़वाली रामलीला को उमड़ रही भीड़, नई पीढ़ी को भी भाई अपणी बोली
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ( Uttarkashi ) में ऐतिहासिक रामलीला ( Famous Ramlila ) का मंचन किया जाता है. अगर कोरोना काल के अपवाद को छोड़ दे तो जनपद पर मुख्यालय पिछले 70 सालों से लगातार रामलीला का ऐतिहासिक मंचन रामलीला मैदान में होता आ रहा है.
हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी ( Uttarkashi ) में ऐतिहासिक रामलीला ( Famous Ramlila ) का मंचन किया जाता है. अगर कोरोना काल के अपवाद को छोड़ दे तो जनपद पर मुख्यालय पिछले 70 सालों से लगातार रामलीला का ऐतिहासिक मंचन रामलीला मैदान में होता आ रहा है. यहां रामलीला के मंचन ( Ramlila Staged ) में पिछले साल से गढ़वाली भाषा में संपूर्ण रामलीला ( Sampoorna Ramlila ) का मंचन किया जा रहा है. इस वर्ष भी रामलीला का मंचन गढ़वाली भाषा में हो रहा है.
इस रामलीला के मंचन का ये है उद्देश्य
आपको बता दें कि इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आम युवा अपनी भाषा के साथ जुड़े. दरअसल, 'अपणी भाषा अपणी बोली' जिसको नई पीढ़ी भूलती जा रही है. ऐसा माना जा रहा है कि गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देने के लिए यह एक बेहतर पहल है. गढ़वाली भाषा ( Gadhwali Language ) में रामलीला के मंचन के लिए तैयारियां जोरों शोरों से की गई हैं. इसके लिए रामलीला के पात्रों को बाकायदा रामलीला समिति उत्तरकाशी द्वारा गढ़वाली में अभ्यास भी करवाया गया है.
रामलीला मंचन से होगा गढ़वाली भाषा का प्रसार
आपको बता दें कि हमने अमूमन हिंदी भाषा में ही रामलीला का मंचन देखा है, लेकिन गढ़वाली भाषा में रामलीला का मंचन दूसरी बार उत्तरकाशी के ऐतिहासिक रामलीला में किया जा रहा है. वहीं, इस मामले में उत्तरकाशी आदर्श रामलीला समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि गढ़वाली भाषा में रामलीला का मंचन करने से कहीं ना कहीं गढ़वाली भाषा का प्रचार-प्रसार होगा. साथ ही गढ़वाली भाषा को बढ़ावा मिलेगा.
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