Uttrakhanad: क्या इतिहास के पन्नो में सिमटकर रह जाएगा ऐतिहासिक चैती मेला, 3000 में होती है LED की रौशनी
Uttrakhanad News: काशीपुर का ऐतिहासिक चैती मेले का अस्तित्व खतरे में है. आखिर किसके इशारों पर दुकानदारों की जेब पर डांका डाला जा रहा है.
सतीश कुमार/काशीपुर, उधम सिंह नगर: काशीपुर के ऐतिहासिक चैती मेले की पारंपरिक वर्षों से चली आ रहा है. वहीं, अब मां भगवती बाल सुंदरी देवी के ऐतिहासिक चैती मेले का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है. ऐसा इसलिए लगातार बढ़ती महंगाई, मेले को खत्म करने में लगी हुई है. वहीं, मेले का अस्तित्व खत्म होने पर पहुंच गया है. दरअसल, मेले के अस्तित्व पर बढ़ते खतरे की तरफ किसी का बी ध्यान नहीं है. वहीं, भारी मात्रा में लगने वाली दुकानों की गिनती में लगातार कमी आती जा रही है. हजारों की दुकान के दाम अब लाखों में कर दिए गए हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला.
केवल 2000 से 3000 आता है LED बल्ब जलाने का बिल
दरअसल, जनपद उधम सिंह नगर के काशीपुर में लगने वाला ऐतिहासिक मां भगवती सुंदरी देवी का चैती मेले का शुभारंभ हो चुका है, लेकिन इस बार ऐतिहासिक चैती मेला महंगाई की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है. काशीपुर में लगने वाला चैती मेला अपने आप में एक ऐतिहासिक मेला है. वहीं, सरकारी तंत्र की उदासीनता के चलते टेंडर प्रक्रिया के बाद भी, दुकानों के ऊंचे दाम मांगे जा रहे हैं. इसके कारण दुकानदार को दुकान कभी 7000 में मिल जाती थीं. उस दुकान के अब 20 से 25,000 हजार रुपये मांगे जा रहे हैं.
चैती मेले के अस्तित्व का दुश्मन कौन, सरकारी तंत्र या टेंडर लेने वाले ठेकेदार
आपको बता दें कि केवल इतना ही नहीं, 40 वाट का एक एलईडी बल्ब के बिल भी 2000 से 3000 के बीच वसूला जा रहा है. वहीं, मेले के ठेकेदारों के मनमानी मेले का अस्तित्व खतरे में डालती दिखाई दे रही हैं. मेले में दुकानों के बढ़ते दामों को देखकर दूरदराज से दुकानदारों ने मेले की शुभारंभ होने के बाद भी अपनी दुकानों का शुभारंभ नहीं किया. बस दुकानदार इंतजार कर रहे हैं कि कब दुकानों के दाम कम हों, और दुकानदार अपनी दुकानें लगाकर मेले की रौनक बढ़ाएं. फिलहाल, मनमाने दामों ने मेले की रौनक लगभग खत्म ही कर दी है.
अपने आप में बेहद खास ऐतिहासिक चैती मेले का अस्तित्व कहीं न कहीं ठेकेदारों के दामों के चलते खत्म होता दिखाई दे रहा है. मेले के लगने वाली दुकानों के दामों ने लोगों को दुकान न लगाने पर मजबूर कर दिया है. अगर समय रहते सरकार ने इसकी तरप ध्यान नहीं दिया तो, अगर ऐसा ही रहा तो, मेले का अस्तित्व सिर्फ किताबों के पन्नों में ही यादगार बनकर रह जाएगा.