वाराणसी: वाराणसी में गंगा नदी का पानी हरा होने से 'नमामि गंगे' के अधिकारियों की चिंता बढ़ गई थी. ऐसा क्यों हो रहा है इसकी जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट वाराणसी जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा को सौंप दी है. कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में बताया है कि विंध्याचल में पुरानी तकनीक से बने एसटीपी से यह शैवाल बहकर वाराणसी आ रहे हैं. पिछले दिनों हुई बरसात में इनकी संख्या काफी ज्यादा थी.


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वाराणसी जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने कहा कि जांच रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी और जिम्मेदारों पर कार्रवाई के लिए भी लिखा जाएगा. उन्होंने कहा कि गंगा में जलस्तर कम होने के कारण पानी का प्रवाह धीमा पड़ गया है. इसकी वजह से शैवाल की समस्या उत्पन्न हो गई है. नदी में जलस्तर बढ़ने के साथ जब प्रवाह तेज होगा तो यह समस्या दूर हो जाएगी. पिछली बार मिर्जापुर के पास लोहिया नदी से ये शैवाल गंगा में आए थे.


हरे शैवाल से कम होता है पानी में आक्सीजन
बीएचयू में इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ कृपाराम ने बताया था कि जल में युट्रोफिकेशन प्रक्रिया होने से एल्गी ब्लूम (हरे शैवाल) बनते हैं. ऐसा तब होता है जब जल में न्यूट्रिएंट काफी बढ़ जाते हैं. इस कारण गैर जरूरी स्वस्थ जीवों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है. शैवालों को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है.


गंगा नदी का इकोसिस्टम काफी प्रभावित होता है
इससे पानी में ऑक्सीजन कम होने लगता है, जिससे बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सबसे पहले प्रभावित होती है.  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्राथमिक जांच में भी यह बात सामने आई थी कि गंगाजल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा निर्धारित मानकों से ज्यादा हो गई है. शैवालों के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से गंगा का इकोसिस्टम प्रभावित होता है. गंगा में रहने वाले जलीय जीव जन्तुओं के जीवन पर संकट मंडराने लगता है.


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