गरुड़ पुराण के आचार कांड में बताया गया है कि हमें किन लोगों के घर भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए.
यदि हम इन लोगों के घर भोजन करते हैं तो इनके हिस्से के पाप हमें भी मिल जाते हैं और हमारे पाप बढ़ जाते हैं.
किसी चोर या अपराधी का जुर्म साबित हो चुका हो तो उसके घर भोजन नहीं करना चाहिए. वरना उसके पाप के भागीदार बन जाएंगे.
जिस घर में कोई महिला या पुरुष जान बूझकर गलत आचरण करता हो वहां भोजन करने से पाप बढ़ता है.
जिस घर में किसी की मजबूरी का फायदा उठाकर पैसा कमाया गया हो वहां भोजन नहीं करना चाहिए.
क्रोधी व्यक्ति के घर खाना खाने से क्रोध बढ़ता है, क्रोधी व्यक्ति किसी दिन खाने के कारण ही अपमानित कर सकता है.
निर्दयी व्यक्ति के सिर पर पाप का बोझ होता है, उसके घर खाना खाने से उसका पाप बंट जाता है और खाने वाले के हिस्से चला जाता है.
चुगली या निंदा करने वालों के घर खाने से भी पाप बढ़ता है क्योंकि निंदा करते हुए भोजन करना भी पाप है.
जिस घर का मालिक अत्यचारी हो, कमजोर और मजबूर को दबाता हो, उसके घर का खाना भूल से भी नहीं खाना चाहिए.
गरुड़ पुराण के अनुसार नशीले पदार्थों का कारोबार करने वाले के घर भोजन करना पाप का भागीदार बनाता है.