भूरिश्रवा सोमदत्त का पुत्र था और उसके दादा बहलिका राजा शांतनु के बड़े भाई थी यानी वो भी कुरुवंश का था.
भूरिश्रवा कौरव सेना के 11 सेनापति में एक था. उसके रथ का ध्वज सूर्य के समान हमेशा प्रकाशमान रहता था.
युद्ध में भूरिश्रवा की सात्यकि के साथ कई मुठभेड़ हुई थीं. भूरिश्रवा ने सात्यकि के 10 पुत्रों को मार डाला. सात्यकि भी युद्ध में कूद गया.
भूरिश्रवा और सात्यकि के बीच पहले बाण चले. फिर गदा युद्ध औऱ तलवारबाजी हुई. लेकिन सात्यकि की तलवार गिरते ही भूरिश्रवा ने उसकी गर्दन दबोच ली.
भूरिश्रवा इस कारण सात्यकि को युद्ध भूमि में मल्ल युद्ध के दौरान जमीन पर पटका. सीने पर लात से प्रहार किया, लेकिन उसकी जान नहीं ले पाया.
बलशाली भूरिश्रवा ने सात्यकि को उठाकर धरती पर पटका और चोटी को पकड़कर तलवार निकाल ली. तभी अर्जुन संकटमोचक बनकर पहुंचे.
अर्जुन ने कृष्ण के निर्देश पर बाण चलाकर भूरिश्रवा की भुजा काट दी. भूरिश्रवा ने इसे अन्याय बताते हुए कहा कि वो तो अर्जुन से नहीं लड़ रहा था.
अर्जुन ने कहा, भूरिश्रवा जब खुद अकेले कई योद्धाओं से लड़ रहा था तो कोई भी योद्धा भी इसमें शामिल हो सकता है. उन्होंने अभिमन्यु वध की याद भी दिलाई.
लेकिन भूरिश्रवा इतना बलशाली था कि उसने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाया और अर्जुन की ओर फेंका.
भूरिश्रवा पृथ्वी को प्रणाम कर युद्धक्षेत्र में ही उसने समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी.
सात्यकि जब भूरिश्रवा के चंगुल से छूटा तो अर्जुन और कृष्ण के मना करने पर भी उसने उसका गला काट दिया.
भूरिश्रवा के पिता सोमदत्त को उसके वध का ज्ञान हुआ तो वह सात्यकि से युद्ध करने पहुंचा. हाथ कटे इंसान को मारना उसने अधर्म माना.
लेकिन सात्यकि की मदद के लिए श्रीकृष्ण और अर्जुन थे. ऐसे में सोमदत्त भी बुरी तरह से पराजित हो गया
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.