प्रेमानंद महाराज के पास कई लोग अपनी जिज्ञासाएं और समस्याएं लेकर आते हैं. उनके विचार और उपदेश भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं और वेदांत पर आधारित होते हैं.
आध्यात्मिक परंपराओं और वेदांत पर आधारित ज्ञान के आधार पर प्रेमानंद महाराज लोगों के सवालों का समाधान करते हैं. अब उन्होंने कर्म से भाग्य बदलने को लेकर अपनी राय दी है.
प्रेमानंद जी महाराज के मुताबिक, कर्म और भाग्य दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं और ये एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि आपको 84 लाख योनि के बाद आपको मनुष्य जीवन मिलता है. सिर्फ मनुष्य जीवन में ही आपको अपने कर्मों को सुधारने का मौका भी मिलता है.
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक, पशु अपने भाग्य को नहीं बदल सकता, लेकिन मनुष्य अपने कर्मों द्वारा अपने भाग्य को बदल सकता है.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है. व्यक्ति के वर्तमान और पिछले कर्म ही उसके भविष्य को आकार देते हैं.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, अगर अच्छे कर्म किए जाएं, तो उसका परिणाम भी अच्छा होता है. भाग्य कोई स्थायी और अपरिवर्तनीय चीज नहीं है.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, अपने वर्तमान कर्मों को सुधारकर और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर, व्यक्ति अपने भाग्य को बदल सकता है.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, सिर्फ कर्म करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सही दिशा में करना भी जरुरी है. साथ ही भक्ति, साधना, और आत्म-अवलोकन के जरिए व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, ईश्वर की कृपा और भक्ति से कर्म के प्रभाव को भी बदला जा सकता है. जब व्यक्ति सच्चे मन से प्रयास करता है और धर्म के मार्ग पर चलता है, तो ईश्वर उसका मार्ग प्रशस्त करते हैं.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, अध्यात्म में भी कर्म के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति जितने भी कष्ट भोगता है या उसके भाग्य में जो दुर्गति लिखी होती है, वो उसके संचित कर्मों (पिछले जन्मों के बुरे कर्मों ) का परिणाम होती है.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि अगर आपके खाते में बुरे कर्म हैं, तो ये आवश्यक है कि आप अच्छे कर्मों को कर अपने भाग्य के परिणाम को बदलने की कोशिश करें या उन बुरे कर्मों को नष्ट करें.
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और AI द्वारा काल्पनिक चित्रण का Zeeupuk हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.