चंपावत उत्तराखंड का सबसे छोटा जिला है. प्रकृति की गोद में बसा ये हिल स्टेशन बेहद खूबसूरत है और यहां देश के कोने-कोने से सैलानी आते हैं.
पर्यटन स्थल में यहां के मंदिर प्रमुख हैं. चंपावत के मंदिर शिल्प कला की दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट मंदिर है. यहां शहर के बीचो-बीच मंदिर है.
भगवान शिव की प्रतिमा के अलावा अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा भी है, इसका निर्माण 1272 में चंद्र राजाओं ने कराया था, जिसका दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं.
एक ऊंचे पर्वत पर चंपावत के पूर्व दिशा में ये मंदिर है. इसे कानदेव के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर के आस-पास का नजारा बेहद खूबसूरत है.
तहसील भवन के पास ये मंदिर है. इस मंदिर में भी शिल्प कला की अनूठी छाप आपको देखने को मिलेगी. नागनाथ महाराज की मान्यता यहां पौराणिक समय से चली आ रही है.
चंपावत पिथौरागढ़ मोटर मार्ग के पास एक गांव पड़ता है मादंली तली यहीं पर ये 9 पत्थर का मकान स्थित है. इसे आप किसी भी कोने से गिनेंगे तो पत्थरों की संख्या 9 ही आएगी.
पांडव भाईयों में से एक भीम के पुत्र घटोत्कच का मंदिर बहुत खूबसूरत और भव्य है. यहां घटोत्कच की विशाल प्रतिमा भी है. इस मंदिर से ये पुष्टि होती है कि पांडव यहां आए थे.
शहर से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर ये ऐतिहासिक धरोहर स्थित है. यहां से अद्वैत आश्रम के लिए पैदल मार्ग जाता है.
जब चंद्र राजाओं ने श्री जगन्नाथ मिस्त्री से बालेश्वर का खूबसूरत मंदिर बनवाया था तो मिस्त्री का दाहिना हाथ कटवा दिया था. ताकि पूरी दुनिया में ऐसा मंदिर दोबारा न बने.
मिस्त्री ने भी चंद्र राजाओं के घमंड तोड़ने के लिए अपनी बेटी कुमारी कस्तूरी की मदद से बालेश्वर मंदिर से भी भव्य और सुंदर कलात्मक इस ऐतिहासिक नौला(बावली) का निर्माण किया.
एक पर्वत पर बाणासुर का किला स्थित है. इस किले के अंदर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है. ये किला भी शिल्प कला का अनूठा उदाहरण पेश करता है.
प्रकृति की सुंदरता से भरपूर ये स्थल चंपावत से 14 किमी दूर है. पर्यटकों के लिए ये स्वर्ग से कम नहीं. यहां आस-पास देवदार के वृक्षों का सुंदर जंगल है. यहां फूलों और जड़ी बूटियों का भंडार है.
हरे-भरे जंगलों के बीच प्रकृति से सजा ये वही स्थल है जहां स्वामी विवेकानंद को आध्यात्मिक शांति मिली थी. इसके बाद यहां रामकृष्ण शांति मठ की स्थापना हुई थी.
यहां रक्षाबंधन के मौके पर अषाढ़ी कौतिक मनाया जाता है, जिसे बग्वाल मेले के नाम से जाना जाता है. ये मेला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस मेले में होने वाले पाषाण युद्ध को देखने लोग आते हैं.
पंचेश्वर चामू या चौमुहं मंदिर यहां लगने वाले वार्षिक मेले के लिए प्रसिद्ध है. चौमुहं देवता को क्षेत्रीय पशुपालकों के रक्षक के रूप में जाना एवं पूजा जाता है. ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है.
ये स्थल पर्यटकों के लिए एक वरदान है. श्याम ताल हिमालय एवं प्रकृति की गोद में स्थित है. ये झील नीले रंग की दिखाई देती है. यहां बरसात के मौसम में सुंदर नजारा दिखाई देता है.
सिख धर्म का ये पवित्र स्थल चंपावत से 72 किमी दूर है. मान्यता है कि इस स्थान पर स्वयं गुरु नानक ने यात्रा की थी. यहां के गोरख पंथी जोगियों के साथ विचार विमर्श किया था.
ये मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है. पूरे साल देश भर से पर्यटक आते हैं. चैत्र नवरात्र में यहां एक विशाल मेला लगता है. मंदिर में जाने के लिए 7 किमी का पैदल ट्रेक चढ़ना पड़ता है.
इस पवित्र गुफा की खोज 1993 में एक रहस्यमय ढंग से हुई. इस 14 वर्षीय बालक को सपने में मां दुर्गा ने दर्शन दिए और इस गुफा के विषय में बताया. ये गुफा चंपावत के बारसी गांव में है.
एबट माउंट चंपावत में लोहाघाट से लगभग 8 किमी दूर काली नदी के पास बसा है. माउंट एबट को ब्रिटिश शासन काल में बसाया गया था. यहां ब्रिटिश शासन काल की करीब 16 पुरानी हवेलियां हैं.
माउंट एबट वैसे तो बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है, लेकिन इसे दुनिया की सबसे डरावनी जगहों में से एक भी माना जाता है. इसे जॉन हेरॉल्ड एबॉट ने बसाया था. उनके नाम पर ही इसका नाम पड़ा.