अपने शुभ कार्यों में हम चावल का उपयोग जरूर करते हैं. पूजन कर्म में देवी-देवता को चावल चढ़ाए जाते हैं, साथ ही किसी व्यक्ति को जब तिलक लगाया जाता है, तब भी चावल का उपयोग किया जाता है.
सभी देवी-देवताओं की पूजा में चावल के बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती है. चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो. अर्थात किसी भी पूजा में गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम के साथ ही अक्षत भी चढ़ाए जाते हैं.
चावल यानी अक्षत यानी चावल को हमारे ग्रंथों में सबसे पवित्र और श्रेष्ठ अनाज माना गया है. इसे देवान्न भी कहा गया है.
भगवान को चावल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए नहीं होने चाहिए. अक्षत पूर्णता का प्रतीक है अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए.
चावल के कुछ दाने रोज चढ़ाने से भगवान की कृपा मिलती है. शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से शिवजी अतिप्रसन्न होते हैं.
देवताओं का प्रिय अन्न चावल माना जाता है. अगर पूजा पाठ में किसी सामग्री की कमी रह जाए तो उस सामग्री का स्मरण करते हुए चावल चढ़ाए जा सकते हैं.
बहुत सी ऐसी सामग्री होती हैं जो सभी देवी-देवताओं को नहीं चढ़ती. जैसे तुलसी को कुंकु, शिव को हल्दी, गणेश पर तुलसी, दुर्गा को दूर्वा नहीं चढ़ती. लेकिन चावल हर भगवान को चढ़ाए जाते हैं
शास्त्रों में अन्न और हवन को ईश्वर को संतुष्ट करने वाला साधन माना गया है. अन्न अर्पित करने से भगवान के साथ-साथ पितर भी तृप्त होते हैं.
चावल को सबसे शुद्ध अन्न माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है. इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते.
ये भी मान्यता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी. ऐसे में लोग इस भाव के साथ अक्षत अर्पित करते हैं कि हमारे पास जो भी अन्न और धन है, वो आपको समर्पित है.
शास्त्रों और पुराणों में बताया गया है कि अन्न और हवन यह दो साधन है जिनसे ईश्वर संतुष्ट होते हैं. मानव की तरह अन्न से देवता और पितर भी तृप्त होते हैं. इनकी तृप्ति से ही घर में खुशहाली और अन्न धन बढ़ता है.
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