पितृपक्ष वह समय है जब हम अपने पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व है. धार्मिक दृष्टि से पितृ पक्ष यानी श्राद्ध माह में पूर्वजों या पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करने का विधान है.
इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान पितरों के निमित्त किया जाता है. इन सभी कर्मों को करने के भी कुछ नियम होते हैं.
क्या आप जानते हैं पितरों का श्राद्ध करते हुए अनामिका उंगली में क्यों पहनते है कुशा की अंगूठी, जानें गरुड़ पुराण में ये वजह…
जानते हैं कि क्यों पिंडदान करते समय अंगूठे के माध्यम से पिंडों पर जल अर्पित किया जाता है और श्राद्ध कर्म करते समय अनामिका उंगली पर कुशा की अंगूठी क्यों पहनी जाती है.
कुशा घास को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है. यही वजह है कि, कई धार्मिक अनुष्ठानों में कुशा का इस्तेमाल किया जाता है.
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि, जब गरुड़ देव अमृत कलश लेकर स्वर्ग से आए थे तो उन्होंने कुछ समय के लिए कुशा के ऊपर कलश रख दिया था,तब से ही कुशा को बेहद पवि्त्र माना जाता है.
श्राद्ध कर्म के दौरान कुशा से अंगूठी बनाई जाती है, जिसे अनामिका उंगली (Ring Finger) में धारण किया जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अनामिका उंगली में तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास है.
अनामिका के मूल भाग में भगवान शिव, मध्य भाग में विष्णु जी और अग्रभाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं. यानि इस उंगली को बहुत पवित्र माना जाता है, इसीलिए श्राद्ध कर्म के दौरान कुशा की अंगूठी इस उंगली पर पहनी जाती है.
ऐसा कर हम यह दर्शाते हैं कि पूर्ण रूप से पवित्र होकर हम पितरों का स्मरण कर रहे हैं.
कुशा की अंगूठी आपको पिंडदान करते समय धारण करनी चाहिए और साथ ही कुशा की अंगूठी भी धारण करनी चाहिए. इन नियमों का पालन करते हुए श्राद्ध करने से आपके पितृ आप पर कृपा बरसाते हैं.
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