देवभूमि उत्तराखंड सिर्फ पहाड़ों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. यहां कैंचीधाम, पूर्णागिरि जैसे कई सारे मंदिर हैं, जहां आप जा सकते हैं. वहीं यहां के कुछ ऐसे त्योहार हैं, जिनके बारे में अपने कभी सुना भी नहीं होगा.
नीम करोली बाबा के आश्रम जाने के लिए सही समय की तलाश में हैं तो मार्च से जून तक का समय सही है. इसके अलावा सितंबर से नवंबर के बीच भी कैंची धाम घूमने जा सकते हैं. यह सुबह 5:30 से शाम 9:00 बजे तक खुलता है.
पूर्णागिरि मेला शुरू हो चुका है. यह मेला हर साल होता है जो 84 दिन तक चलता है. शाम सात से सुबह छह बजे तक यह मंदिर बंद रहता है बाकि आप यहा कभी भी जा सकते है.
घुघुतों को सुबह-सुबह कौवों को खिलाया जाता है. घुघुते की माला बनाकर बच्चों को पहनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन कौवे गंगा नदी में नहाकर घुघुते खाने हर घर पर जाते हैं.
इस त्योहार में बच्चे फूल तोड़कर लाते हैं और पारंपरिक पोषाकों में लोकगीत गाते हुए इन फूलों को हर घर की देहलीज पर रखते हैं. ऐसे करता हुए बच्चे हर घर तक जाते हैं और पूरे गांव सजा देते हैं.
उनमें महिलाएँ परेड शुरू करती हैं और पौधों को निकालती हैं. इस दौरान पुरुष और बच्चे तलवारें लेकर चलते हैं. पौधों को युद्ध के निशान के रूप में वापस घर लाया जाता है. यह पिथौरागढ़ जिले की रुंग जनजाति द्वारा मनाया जाता हैं.
वट सावित्री व्रत सौभाग्य देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना जाता है. कहा जाता है कि वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत के प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुनः जीवित किया था.
स्याल्दे बिखौती मेला कुमाऊँ के छोटे से कस्बे द्वाराहाट में आयोजित किया जाता है. यह मेला हर साल वैसाख के हिंदू महीने में लगता है और हिंदू नववर्ष की शुरुआत के साथ ही शुरू हो जाता है.
यह त्यौहार भी हरेले की तरह ऋतु आधारित त्यौहार है. हरेला जहाँ बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घी-त्यार फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है.
हिलजात्रा, पिथौरागढ़ जिलों के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. यह चरवाहों और कृषिविदों का त्योहार है. हिलजात्रा का संबंध रोपाई और बरसात के मौसम के अन्य कृषि और पशुचारण कार्यों से है.