मणिकर्णिका घाट (Mannie karnika ghat) वाराणसी के मुख्य स्थानों में गिना जाता है.दाह संस्कार के लिए इसे शुभ माना जाता है. यहां 24 घंटे चिता जलती रहती है.
दशाश्वमेध घाट विश्वनाथ मंदिर के पास है. यहां अद्धभुत गंगा आरती देख सकते हैं. यहां भगवान शिव का ध्यान किया जाता है.
अस्सी घाट वाराणसी के दक्षिणी घाट के तौर पर जाता जाता है. गंगा और अस्सी नदियों के संगम पर यह घाट स्थित है. इस घाट के दर्शन से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है.
तुलसीदास के नाम पर तुलसी घाट का नाम रखा गया है, रामचरितमानस लिखते समय तुलसीदास यहीं बैठते थे. लोलार्क घाट भी इस घाच को कहते हैं. इस घाट के दर्शन से ज्ञान बढ़ता है.
ललिता घाट पर पशुपतिश्वर मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि भक्त इस घाट के दर्शन करके भगवान शिव का आशीर्वाद पा सकते हैं. ऐसा करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है.
एक महल इस घाट के उत्तरी भाग में स्थित है. राजाराव बालाजी ने 1720 में इस घाट को बनाया था. इस घाट पर बड़े भव्य तरीके से मां गंगा के सम्मान में तेल दीप उत्सव मनाया जाता है.
गंगा महल घाट का नाम इस घाच पर महल होने की वजह से पड़ा. शैक्षणिक संस्थानों "विश्वविद्यालय" के लिए इस घाट का इस्तेमाल किया जाता है.
प्रयाग घाट श्रद्धालुओं से भरा रहता है. यहां प्रयागराज के पवित्र शहर प्रयाग का प्रतिरूप है. यहां ज्योतिषी रतन छाते के नीचे बैठते है और तीर्थयात्रियों के भाग्य पढ़ते हैं.
हरिश्चंद्र घाट भी श्मशान घाट ही है. सत्य के प्रतीक और अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र ने इसी श्मशान घाट पर अपने बेटे का अंतिम संस्कार किया. तब से इस घाट का नाम हरिश्चंद्र पड़ गया.
सिंधिया घाट का उल्लेख गीवर्णपदमंजरी में किया गया है. यहां के वीरेश्वर या आत्मविरेश्वर (शिव) मंदिर को ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया की पत्नी बैजाबाई सिंधिया को दिया तब से इसका नाम सिंधिया घाट पड़ गया.
पंचगंगा घाट पर बिंदुमाधव मंदिर है जोकि भगवान विष्णु को समर्पित है. मंदिर के कारण इसे इस घाट को बिंदुमाधव घाट भी कहते हैं. पंचनद यानी गंगा अदृश्य रूप से 4 नदियों- यमुना, सरस्वती, किरना व धूतपापा से मिलती है.