हर शहर में क्यों होते हैं घंटाघर, 300 साल पुराना इतिहास

Amrish Kumar Trivedi
Sep 21, 2023

घंटाघर का इतिहास

20वीं सदी से पहले ज्यादातर लोगों के पास घड़ियां नहीं होती थीं. शहरों में पहर या घंटा बीतने की जानकारी देने के लिए इनका निर्माण हुआ.

300 साल पुराने

18वीं सदी से पहले घरों में भी घड़ियां भी बहुत कम थीं. काफी महंगी और मरम्मत के कारण घंटाघर बनाए गए.

टाइम बताने का जरिया

शहरों में पहले बड़े-बड़े कारखाने होते थे, जहां मजदूरों के आने-जाने औऱ लंच टाइम जैसी चीजों के लिए भी घंटाघर बनाए गए.

पीतल के घंटे

घंटाघर में पेंडुलम वाली घड़ियां होती थीं और साथ में पीतल के बड़े घंटे लगते थे, जिसे बजाकर दूर तक पहर होने का ऐलान होता था.

महंगी घड़ियां

धीरे-धीरे घंटाघर के टॉवर के साथ डायल वाली सुइयों वाली घड़ी लगाई जाने लगी इसे देखकर भी लोग समय देख लेते थे.

जोधपुर घंटाघर

जोधपुर के घंटाघर की घड़ी 113 साल पुरानी है, जो लंदन के क्लॉक टॉवर जैसी ही है.

मेरठ की दमदार आवाज

मेरठ के घंटाघर की आवाज इतनी दमदार थी कि 15 किमी दूर तक सुनाई देती थी.

देहरादून का अनोखा घंटाघर

देहरादून का घंटाघर षटकोणीय यानी छह दिशाओं वाले आकार का है.

लखनऊ का घंटाघर सबसे ऊंचा

लखनऊ का घंटाघर का टॉवर सबसे ऊंचा है, जो 1887 में बना और 221 फीट का है.

जयपुर का गुलाबी घंटाघर

जयपुर का घंटाघर महाराजा सरदार सिंह ने बनाया था और यह 100 फीट ऊंचा है.

बहराइच का घंटाघर

बहराइच का घंटाघर 1911 में बना था और यह आजादी के आंदोलन का भी गवाह रहा है.

दिल्ली का घंटाघर

दिल्ली का घंटाघर चांदनी चौक का शान था, जो 1863 में बना, लेकिन 1950 के आसपास यह ढह गया.

हरिद्वार का घंटाघर

हरिद्वार का घंटाघर को द क्लॉक टॉवर ऑफ हरिद्वार (The Clock Tower of Haridwar) का राजा बिरला टॉवर (Raja Birla Tower) भी कहते हैं.इसे 1938 में राजा बलदेव दास बिरला ने बनाया था. ये हर की पौड़ी की शान है.

इलाहाबाद का मशहूर घंटाघर

इलाहाबाद का घंटाघर 1913 में बना था. इसे प्रयागराज क्लॉक टॉवर (Prayagraj Clock Tower) के नाम से भी आजकल जाना जाता है.

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