चमोली जिले के दूरस्थ घेस गांव को हर्बल विलेज के रूप में नई पहचान मिल रही है. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की पहल पर इस गांव में जड़ी बूटियों की खेती शुरू हुई.
यहां कूट, जटामासी, कुटकी समेत अन्य जड़ी बूटियों का उत्पादन ग्रामीण करते हैं. इससे ग्रामीण अब लाखों कमा रहे हैं. वहीं, गांव से पलायन भी न के बराबर है.
चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से लगभग 145 किलोमीटर दूर, त्रिशूल पर्वत की तलहटी पर घेस गांव स्थित है. इस गांव के बारे में एक कहावत भी लोकप्रिय है, “घेस जिसके आगे नहीं है कोई देश”
यहां से ग्रामीण न केवल देश बल्कि विदेशों तक भी जड़ी-बूटियों को बेचते हैं. वैसे तो यहां कई जड़ी-बूटियां उगाई जाती है, लेकिन कुटकी का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है.
यहां परंपरागत खेती में ग्रामीण चौलाई, आलू, राजमा, ओगल, गेंहूं, मंडुवा और झंगोरा भी उगाए जाते हैं. ग्रामीण किसान अब मटर की नगदी फसल भी उगा रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है.
दशकों से इस गांव में जड़ी बूटियों का उत्पादन हो रहा है. इससे किसान लाखों का व्यापार करते हैं, जो कटिग सुखाने के बाद तैयार होता है और लगभग 3 साल में पूरा होता है.
उच्च हिमालयी क्षेत्र घेस में औषधीय जड़ी बूटियों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तकनीक के साथ व्यावसायिक खेती के मॉडल के विकास पर भी जोर दिया गया.
माना जा रहा था कि इस से न केवल किसानों को आर्थिक लाभ होगा, बल्कि राज्य को भी यहां से फायदा होगा, और यह सुविधा बेरोजगार युवाओं को रोजगार का मौका देगी.
हर्बल गांव घेस को पर्यटन के साथ जोड़ने की बात भी कही गई. जड़ी बूटियों के लिए हर्बल, वाशिंग, ग्रेडिंग, ड्राइंग, पैकेजिंग और स्टोरिंग के लिए कॉमन फेसिलिटी सेंटर बनाने से और फायदा होगा.