गोलगप्पे का नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है. राह चलते अगर दुकान दिख गई तो खाकर ही आगे बढ़ने का मन करता है. इसलिए अगर इसे स्ट्रीट फूड का राजा कहा जाए तो गलत नहीं होगा. गोलगप्पे की सबसे खास बात यह है कि इसे खाने के लिए आपको जेब ज्यादा ढीली नहीं करनी पड़ती. तो आइये जानते हैं गोलगप्पे का इतिहास.
गोलगप्पे को कहीं-कहीं पानी पुरी भी कहा जाता है और कई जगहों पर इसे बतासा भी कहा जाता है. गोलगप्पा शब्द दो शब्दों गोल और गप्पा से बना है.
गोल' शब्द आंटे से बने उस कुरकुरे आकार को संदर्भित करता है, जिसमें पानी और आलू को भरा जाता है.
वहीं, गप्पा खाने की उस प्रक्रिया को दर्शाता है, जिसमें पलक झपकते ही यह मुंह के अंदर घुल जाती है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, गोलगप्पे का संबंध मगध काल से है. मगध के राजा ने इसे तीन से चार सौ साल पहले भारत में बनवाया था.
कहा जाता है कि गोलगप्पे की कहानी महाभारत से भी जुड़ी है. इसे एक बार में ही खाया जाता है, इसलिए इसे गोलगप्पा कहते हैं.
एक कथा के अनुसार, जब द्रौपदी शादी करके घर आईं, तो उनकी सास ने उन्हें कुछ सब्जियां और बचा हुआ गेहूं का आटा दिया.
इसके बाद कुंति ने द्रौपदी को कुछ ऐसा बनाने के लिए कहा, जिससे उनके पांचों बेटों का पेट भर सके.
माना जाता है कि यही वह समय था जब नई दुल्हन ने गोलगप्पे का आविष्कार किया था.
'फुल्की', जिसे गोलगप्पे के नाम से भी जाना जाता है, सबसे पहले मगध में उत्पन्न हुई थी.
हरियाणा में इसे 'पानी पताशी', मध्य प्रदेश में 'फुल्की'; उत्तर प्रदेश में 'पानी के बताशे' या 'पड़ाके'; असम में 'फुस्का' या 'पुस्का'; ओडिशा 'गुप-चुप' बिहार, नेपाल, झारखंड, बंगाल और छत्तीसगढ़ में 'पुचका'. गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाड में यह पानी पुरी के नाम से मशहूर है.