वादियों की प्राकृतिक सुंदरता हर किसी का मन मोह लेती हैं. पहाड़ों में सबसे फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन उत्तराखंड है. जहां देश-दुनिया से बड़ी संख्या में पर्यटक घूमने जाते हैं.
उत्तराखंड की वादियां जितनी फेमस हैं, उतने ही पहाड़ों में कुछ ऐसी जगहें भी हैं. जहां आत्माओं का वास या शापित माना जाता है. वहां के भूतिया किस्से बहुत ही ज्यादा फेमस हैं.
कुछ जगहें तो ऐसी हैं जहां पर्यटकों को जाने से मना किया जाता है. आज हम आपको यहां की ऐसी भूतिया जगहों के बारे में बताएंगे, जहां जाने से पहले आपको जानकारी होना बेहद जरुरी है.
नैनीताल का गुर्नी हाउस कभी ब्रिटिश लेखक जिम कॉर्बेट निवास स्थान हुआ करता था. इस घर में अजीबोगरीब घटनाएं घटने के दावे किए जाते हैं. कई बार तो यहां पैरों के निशान भी देखने को मिलते हैं. कभी कभी किसी की आवाज भी सुनाई देती है.
परी टिब्बा 'परियों की पहाड़ी' के नाम से मशहूर है. इस जगह को लेकर भी भूतिया कथा प्रचलित हैं. इस जगह पर अंधेरे में जाने से मना किया जाता है. कहा जाता है कि एक महिला जिसे वहां के लोग चुडैल मानते थे.
वह महिला उस पहाड़ पर रहती थी. उसकी दुष्ट शक्तियों और काली प्रथाओं ने पहाड़ी पर छाया डाली. कहा जाता है इस पहाड़ी पर आज भी उसकी आत्मा भटकती है.
पौड़ी और श्रीनगर के बीच रेलवे लाइन पर स्थित टनल नंबर 33 को लेकर भी कई भूतिया कहानियां फेमस हैं. माना जाता है सुरंग के निर्माण के दौरान एक ब्रिटिश इंजीनियर की असामयिक मौत हो गई थी. उसकी आत्मा सुरंग में ही रहती है.
टनल नंबर 33 को लेकर दावा किया जाता है कि स्थानीय लोगों और रेलवे कर्मचारियों ने सुरंग से पैरों के निशान और फुसफुसाहट सुनी है.
कहा जाता है कि देहरादून के मालदेवता में दुष्ट आत्माएं भटकती हैं. इसकी वजह से अंधेरा होने पर यहां कोई नहीं जाता. इस घने जंगल में कई दुर्घटनाएं और लोगों के रहस्यमयी तरीके से गायब होने की कहानियां भी प्रचलित हैं.
स्वाला गांव को भूतों का गांव भी कहा जाता है. एक समय में यहां अच्छी खासी आबादी थी, लेकिन ये गांव सालों पहले विरान हो गया. कहा जाता है 1952 में यहां से गाड़ी में सवार होकर 8 जवान जा रहे थे. उनकी गाड़ी खाई में गिर गई थी.
चंपावत का लोहाघाट भारत की सबसे डरावनी जगहों में से एक है. यहां एक ऐसा घर है जहां रात तो क्या दिन में जाने में भी लोग डरते हैं. ग्रामीणों को किसी के चीखने के साथ-साथ डरावनी आवाजें भी आती हैं.
मसूरी के माल रोड से तकरीबन 8KM दूरी पर हाथीपांव में एक ऐसी जगह है जहां माइनिंग होती थी. ब्रिटिश राज में यहां चूना पत्थर की खदान में हजारों मजदूर काम करते थे. इस दौरान यहां 50 हजार से ज्यादा मजदूरों की मौत हुई. 1996 में इस खदान को बंद कर दिया गया.
यहां बताई गई सारी बातें लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. कंटेंट का उद्देश्य मात्र आपको जानकारी देना है. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.