उसके चेहरे की चमक के सामने सादा लगा, आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
इतने घने बादल के पीछे ,कितना तन्हा होगा चाँद
तुम भी लिखना तुम ने उस शब कितनी बार पिया पानी , तुम ने भी तो छज्जे ऊपर देखा होगा पूरा चाँद
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा ..तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
इक दीवार पे चाँद टिका था ..मैं ये समझा तुम बैठे हो
सूखी जामुन के पेड़ के रस्ते..छत ही छत पर जा रहा है चाँद
कल चौदवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा. कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
रात को रोज़ डूब जाता है..चाँद को तैरना सिखाना है
मुझे ये ज़िद है कभी चाँद को असीर करूं..सो अब के झील में इक दायरा बनाना है