यूपी का सबसे पुराना मेडिकल कॉलेज, 120 साल पहले भारत आए ब्रिटिश किंग के नाम से मशहूर

Pooja Singh
Sep 18, 2024

केजीएमयू

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है. 1905 से लेकर अब तक कई अहम बदलाव हुए हैं. केजीएमयू से निकले हजारों डॉक्टर्स ने इसका नाम रोशन किया है.

1905 में शुरुआत

रिकॉर्ड्स के मुताबिक,1810 में महाराजा विजय नागरे ने लखनऊ में मेडिकल कॉलेज खोलने की जरूरत जाहिर की थी. उन्होंने इसके लिए तीन लाख रुपये दान देने का प्रस्ताव रखा था.

नहीं मिली इजाजत

आर्थिक कठिनाईयों को देखते हुए उस दौरान यूनाइटेड प्रोविंसन (उत्तर प्रदेश) सरकार ने प्रस्ताव मंजूर करने की इजाजत नहीं दी. इसके बाद 1905 में वेल्स के प्रिंस भारत भ्रमण पर आए.

राजा से अपील

जहांगीराबाद के राजा सर तसद्दुक रसूल ने अयोध्या के राजा से स्थापना को लेकर आग्रह किया. उन्होंने कहा कि वे यूनाइटेड प्रोविंसन के ले. गवर्नर सर जेम्स लाटूश के जरिए भारत सरकार से मेडिकल कॉलेज की स्थापना की संस्तुति करें.

जनता से चंदा

इसके बाद कॉलेज की स्थापना के लिए मंजूरी तो मिल गई, लेकिन शर्त रखी गई कि इसके लिए जनता से आठ लाख रुपए इकट्ठा किए जाएंगे. फिर 21 दिसंबर 1905 को किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की नींव प्रिंस ऑफ वेल्स ने रखी.

भवन का शुभारंभ

भवन का शुभारंभ जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी के भारत आने पर हुआ. उस समय सर जॉन प्रेसकॉट हेवेट यूपी के गवर्नर थे. शुरुआत में करीब 11 लाख रुपया खर्च हुआ था.

1911 में पहला बैच

एमबीबीएस का पहला बैच 31 छात्रों के साथ 1911 में शुरू हुआ. मुख्य भवन को पहले मच्छी भवन कहा जाता था. शुरुआत में ये संस्थान इलाहाबाद विवि से संबद्ध था. फिर लखनऊ विवि से संबद्ध हुआ.

डॉक्टर्स का पहला बैच

कर्नल डब्लू. सेल्बी मेडिकल कॉलेज के पहले प्रिंसिपल नि‍युक्‍त किए गए थे. पांच प्रोफेसर और दो लेक्चरर के साथ पढ़ाई की शुरुआत हुई.1916 में यहां से डॉक्टर्स का पहला बैच निकला.

डेंटल कॉलेज

ये पहले 232 बेड का अस्पताल था. इस बीच यहां देश के साथ ही विदेश के छात्र भी मेडिकल की पढ़ाई करते रहे. 1949 में दूसरी फैकल्टी के रूप में डेंटल कॉलेज शुरू हुआ.

विश्वविद्यालय का दर्जा

पहले सत्र में 10 स्टूडेंट्स ने बीडीएस में एडमिशन लिया. इसके बाद 1956 में पैथोलॉजी समेत अन्य जांच सुविधाएं शुरू हुईं. 16 सितंबर 2002 को इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला.

पुराना नाम

2007 में तत्कालीन सरकार ने इसका नाम छत्रपति साहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय कर दिया, लेकिन पांच साल बाद सत्ता बदलते ही इसे पुराना नाम किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी मिल गया.

सबसे बड़ा अस्पताल

अब ये एशिया के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थानों में शुमार है. विश्वविद्यालय के सौ साल पूरे होने पर 2005 में शताब्दी अस्पताल की स्थापना की गई.2009 में यह पूरा हुआ. इसे दो हिस्से में बांटा गया है.

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