कुंभ मेला 12 वर्षों के अंतराल पर ग्रहों की विशेष स्थिति के आधार पर आयोजित किया जाता है, जिससे इसका धार्मिक और खगोलीय महत्व और बढ़ जाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत का कलश मिला, जिसकी कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन में गिरीं. इसी कारण इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है.
चारों कुंभ स्थलों में प्रयागराज का कुंभ मेला सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जहां संगम पर स्नान आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है.
ऋग्वेद के परिशिष्ट, बौद्ध पाली ग्रंथ जैसे मज्झिम निकाय, और महाभारत के तीर्थयात्रा पर्व में प्रयागराज के संगम में स्नान का महत्व बताया गया है.
महाभारत में उल्लेख है कि माघ मास में संगम में स्नान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक को प्राप्त कर सकता है.
7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में महाकुंभ का उल्लेख किया, उन्होंने 644 ईस्वी में राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रयाग को एक पवित्र नगर बताया, जहां सैकड़ों हिंदू और बौद्ध मंदिर थे.
ह्वेन त्सांग के मुताबिक 7वीं शताब्दी में राजा हर्षवर्धन ने प्रयागराज में कुंभ मेले को बढ़ावा दिया. उनके शासनकाल में यह आयोजन एक विशाल धार्मिक सम्मेलन के रूप में विकसित हुआ.
आगामी महाकुंभ 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में शुरू होगा. यह 45 दिनों तक चलेगा, जिसमें 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है.
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