हमारे समाज में मौजूद किन्नर लोगों की तरह तो शादी नहीं करते हैं लेकिन वो अपने माथे पर सिंदूर सजाते हैं? लेकिन किसके नाम का, ये मन में जरूर आता है.
किन्नर जब एक समूह को जॉइन करते हैं तो इससे पहले खूब नाच-गाना होता है और भोज भी होता है.
इस दौरान किन्नर समाज भी किन्नर वैवाहिक बंधन में बंधते हैं लेकिन यह आम विवाह की तरह नहीं होता है.
इस किन्नर विवाह में किन्नर अपने भगवान अरावन के साथ विवाह के बंधन में बंधते हैं.
दुल्हन बने किन्नर का सोलह श्रृंगार किया जाता है. वह मांग में सिंदूर भरता है और मंगल गीत भी गाए जाते हैं.
इसके बाद उनकी ये शादी केवल एक दिन की होती है. एक दिन बाद ही दूल्हे यानि अरावन देवता की मृत्यु होना मान लिया जाता है और विवाहित किन्नर विधवा हो जाता है.
इसका शोक भी मनाने का विधान है. विधवा किन्नर जिस घराने में जुड़ता है उसी के गुरु की लंबी उम्र की कामना करते हुए उसके नाम का सिंदूर लगाता हैं.
किन्नर ताउम्र अपने गुरु के जीवित रहने तक उनके नाम पर विवाहित माना जाता है. परिवार से अलग होने के बाद किन्नर का गुरू ही उसका सबकुछ होता है.
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