महाभारत युद्ध चल रहा था कि तभी विदुर ने श्रीकृष्ण के पास जाकर एक निवेदन किया. उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा श्रीकृष्ण को बताई.
विदुर ने कहा- "हे प्रभु, मैं धरती पर इतना बड़ा युद्ध देख मैं आत्मग्लानिता से भर गया हूं. मेरी मृत्यु के बाद इस धरती पर अपने शरीर का मैं एक भी अंश नहीं छोड़ना चाहता.
ऐसे में आपसे निवेदन है कि मेरी मृत्यु के बाद न मुझे जलाएं, न गाड़ें, न ही जल में प्रवाहित करें. प्रभु, मेरी मृत्यु के बाद आप कृपया सुदर्शन चक्र में मुझे परिवर्तित करें.
मेरी अंतिम इच्छा यही है. उनकी इस इच्छा को श्रीकृष्ण मान गए और ऐसा ही करने का अश्वासन दिया.
महाभारत का युद्ध जब समाप्त हुआ तो वन में पांचों पांडव विदुर जी से मिलने गए. युधिष्ठिर को देख विदुर ने प्राण त्याग दिए व युधिष्ठिर में ही उनकी अत्मा समाहित हो गए.
युधिष्ठिर के लिए यह सब हैरान कर देने वाला था. अपनी दुविधा का हल जानने के लिए उन्होंने श्रीकृष्ण को स्मरण किया.
श्रीकृष्ण घटनास्थल पर प्रकट हुए और युधिष्ठिर की दुविधा को दूर करते हुए बोले, "हे युधिष्ठिर, चिंता न करो.
विदुर धर्मराज के अवतार थे और तुम भी धर्मराज हो. इस तरह प्राण त्यागने के बाद उनकी आत्मा तुममें समाहित हुई है. अब मैं विदुर को दिया वरदान पूर्ण करूंगा.
इतना कहते हुए श्रीकृष्ण ने विदुरजी के शव को देखते ही देखते सुदर्शन चक्र में बदल दिया. इस तरह उनकी अंतिम इच्छा उन्होंने पूरी कर दी.
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