महाभारत के शक्तिशाली और सबसे बड़े दानवीर योद्धा कर्ण से कौन परिचित नहीं होगी. इस वीर ने अपने वचन के लिए बुराई का भी साथ दिया.
बिना युद्ध का परिणाम सोचे उन्होंने अपना कवच कुंडल दान कर दिया. राजकुमार होते हुए भी उसके पास राज्य नहीं था.
कर्ण की कहानी के दुखद अंत के किस्से और भी हैं. कर्ण को मिले वो तीन श्राप, जो उनके लिए प्राणघाती साबित हुए.
परशुराम ने शाप दिया कि जब तुम्हें इन सब विद्या की ज्यादा जरुरत होगी तभी तुम इसे भूल जाओगे.
परशुराम थक गए तो कर्ण ने की गोद में सिर रखकर सो गए. बिच्छू आया और उसने कर्ण की जांघ पर डंक मारा. गुरू की नींद न टूटे इसलिए बिल्कुल भी नहीं हिले.
कुछ देर में गुरू जी की निद्रा टूटी. उन्होंने कहा कि क्षत्रिय में ही इतनी सहनशीलता हो सकती है, किसी ब्राह्मण में नहीं. गुस्से में परशुराम जी ने श्राप दे दिया.
शब्दभेदी बाण का अभ्यास करते समय ,कर्ण से एक ब्राह्मण की गाय का वध हो गया. ब्राह्मण ने शाप दिया कि " युद्ध के बीच में तुम भी ऐसे मारे जाओगे.
किंवदंतियों के अनुसार कर्ण को धरती मां से भी श्राप मिला. एक बार कर्ण किसी काम से बाहर गए थे,रास्ते में उन्हें छोटी सी कन्या मिली जो रो रही थी.
कर्ण ने उससे रोने का कारण पूछा तो उसने बताया, मेरा सारा दूध गिर गया है. मुझे बहुत डांट पड़ेगी. कर्ण को दया आ गई.
उसने धरती का सीना निचोड़ कर वो सारा दूध निकाल दिया.धरती मां को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने श्राप दिया कि समय आने पर वो उसका साथ छोड़ देंगी.
इन तीन श्रापों ने कुरुक्षेत्र की भूमि पर रंग दिखाया. इस तरह कर्ण को मिले ये तीन श्राप उसके लिए प्राणघाती साबित हुए.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.