शहजादे अकबर की उम्र बहुत कम थी जब मुगल बादशाह हुमायूं की मौत हुई.
बचपन से लेकर जवानी तक अकबर को दो लोगों से सबसे ज्यादा जुड़ाव रहा. पहला था बैरम खां और दूसरी दाई मां माहम अंगा
हुमायूं की मौत के बाद बैरम खां ने मुगलिया सल्तनत को बचाया और ताजपोशी की.
माहम अंगा ने अकबर को पाला. ये अकबर की दाई मां थीं. माहम अकबर के दौर में मुगल सल्तनत की राजनीतिक सलाहकार भी रहीं.
बैरम खान और माहम अंगा के बीच कभी नहीं बनी. बैरम खान की मौत के बाद उसके हिस्से की पावर भी माहम को मिल गई.
माहम का प्रभाव ऐसा था कि उस समय के सेनापति बैरम खान भी अंगा की अकबर से निकटता से घबराता था. इस तरह माहम मुगलिया दौर की सबसे पावरफुल महिला बन गईं.
माहम अंगा बहुत ही शक्तिशाली और योग्य थी. माहम का शाही घराने के साथ ही हरम पर भी दबदबा था.
अकबर भी अपनी मां से ज्यादा अपनी दाई मां पर भरोसा और प्यार था.
माहम शुरू में अकबर के दरबारी मामलों को संभालती रही. वह मुगल सम्राट की राजनीतिक सलाहकार भी थी.
14 साल की उम्र में जब अकबर दिल्ली की गद्दी पर बैठे तब माहम अंगा उनकी बेहद करीबी थीं.
अकबर जब तीन साल के थे जब उनके चाचा कामरान मिर्जा ने उन्हें बंधक बना लिया.
माहम अंगा ने मौके पर पहुंचकर अकबर की जान बचाई. यही नहीं, माहम ने एक बार हुमायूं की जान बचाई थी.
मुगल सल्तनत को बचाने वाले बैरम खान की मौत के बाद उन्होंने अपने बेटे अधम खान को मुगल सेनापति बनवाया.
अकबर ने माहम अंगा और उनके बेटे अधम खान को दफनाने के लिए एक मकबरे के निर्माण का आदेश दिया. इसे अधम खान के मकबरे के रूप में जाना जाता है.
मुगलकालीन पात्रों की यह कहानी मान्यताओं और इतिहासकारों की पुस्तकों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.