मत्स्यपुराण में 18 वास्तुशिल्पी बताए गए हैं, जिसमें एक मयदानव भी थी. विश्वकर्मा के पांच पुत्रों मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ में मयदानव एक था.
मनु को लोहे से, मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसा-तांबा, शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी की विशेषज्ञता थी.
विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार थे तो मयदानव या मयासुर राक्षसों का. उसमें पत्थर को भी पिघलाने की ताकत थी.
एक बार युद्ध के दौरान अर्जुन ने मयदानव को जीवनदान दिया था और उसे अपना मित्र बना लिया था.
अर्जुन की सलाह पर मय दानव ने युधिष्ठिर के लिए राजधानी इन्द्रप्रस्थ में विशाल और चमत्कारिक मायावी महल बनाया.
श्रीकृष्ण ने मयदानव को आज्ञा दी थी कि वो ऐसा महल बनाए जो धरती क्या स्वर्ग में भी किसी के समान न हो.
मयदानव ने पांडवों को देवदत्त शंख, वज्र से भी कठोर रत्न से जड़ित गदा और मणिमय पात्र भी उपहार दिया था
युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ पूरा किया तो दुर्योधन भी अपने 99 भाइयों के साथ युधिष्ठिर के महल में मेहमान बना
दुर्योधन के अनुरोध पर युधिष्ठिर ने सभी कौरवों और कर्ण को इंद्रप्रस्थ महल की भव्यता दिखाने का निर्देश दिया.
इंद्रप्रस्थ ऐसा था कि फर्श की जगह पानी, पानी की जगह जमीन, द्वार की जगह दीवार और दीवार की जगह दरवाजा दिखता था.
द्रौपदी ने युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय राजमहल के बीच बने मायावी कुंड में गिरे दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहकर अपमानित किया था
इसी के बाद द्रौपदी चीर हरण और फिर उसके बाद भयानक महाभारत युद्ध देखने को मिला, जिसमें कौरव वंश का सर्वनाश हो गया.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.