वो मुगल बादशाह, जिसने मां के लिए बनाया खूबसूरत मकबरा, ताजमहल से कम खूबसूरत नहीं

user Jul 16, 2024

ऐतिहासिक इमारतें

मुगलों ने भारत में बहुत सी इमारतें-किले, मकबरे बनवाए. आज हम आपको ऐसे मकबरे के बारे में बताने जा रहे हैं, जो 'मरियम-उज़-ज़मानी का मकबरा' के नाम से जाना जाता है.

मां के लिए मकबरा

एक बेटे ने अपनी मां के लिए ये मकबरा बनवाया. आइए जानते हैं मरियम-उज़-ज़मानी मकबरे के बारे में..

कौन थीं मरियम-उज़-ज़मानी?

आपने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी के बारे में तो सुना ही होगा. क्या आप जानते हैं जोधा बाई को ही मरियम-उज़-ज़मानी कहा जाता था.

मरियम-उज़-ज़मानी

ऐसा इसलिए क्योंकि पहले जमाने में मरियम-उज़-ज़मानी उस महिला को कहते थे, जो बादशाहों को संतान दिया करती थीं.

मरियम-उज़-ज़मानी का खिताब

अकबर को पहली संतान देने वाली जोधा बेगम थीं. इसलिए उन्हें मरियम-उज़-ज़मानी जोधा बेगम के नाम से भी जाना जाता है.

जानें जोधा बेगम के बारे में

जोधा बाई का जन्म सन 1542 में एक हिन्दू राजवंशी राजकुमारी थीं. उनके पिता आमेर रियासत के राजा भारमल थे.

राजनीतिक समझौता था निकाह

जोधा और अकबर के निकाह को लेकर कहा जाता है कि उनका निकाह एक राजनीतिक समझौता था.

मकबरे का इतिहास

मरियम-उज़-ज़मानी' का मकबरा परंपरागत रूप से राजकुमार सलीम (बाद के सम्राट जहांगीर) ने अपनी मां यानि मरियम-उज़-ज़मानी जोधा बेगम के नाम से बनवाया था.

जोधा बेगम का निधन

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जोधा बेगम का निधन 1623 में हुआ था.जोधा बाई का मकबरा मुगल काल की सबसे महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है.

आगरा के सिकंदरा में मकबरा

वर्तमान समय में मरियम-उज़-ज़मानी का मकबरा आगरा के सिकंदरा में स्थित है.

मकबरे की खूबसूरती

जहांगीर ने सत्ता संभालने के बाद मरियम-उज़-ज़मानी के मकबरे का निर्माण करवाया था.इस मकबरे की खूबसूरती देखते ही बनती है.

चार साल में हुआ तैयार

इस मकबरे को बनने में पूर 4 साल लगे थे और ये साल 1627 में बनकर पूरा तैयार हो गया था.

कैसी है वास्तुकला

इस मकबरे की वास्तुकला काफी रोचक और खूबसूरत है. इस मकबरे का निर्माण बाग के बीच में किया गया है

शिलालेखों से भी उकेरा गया

इसकी दीवारों के भीतरी भाग को कुरान के शिलालेखों से भी उकेरा गया है. सुंदर और रुचिपूर्ण पुष्प डिजाइनों से भी सजाया गया है.

जोधा बेगम की समाधि

इसके अंदर जोधा बेगम की समाधि भी बनाई गई है, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। हालांकि, ये मुगल वास्तुकला का बिना गुंबद के बना एक खूबसूरत नमूना है।

डिस्क्लेमर

मुगलकालीन पात्रों की यह कहानी मान्यताओं और इतिहासकारों की पुस्तकों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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