मुगलों ने भारत में बहुत सी इमारतें-किले, मकबरे बनवाए. आज हम आपको ऐसे मकबरे के बारे में बताने जा रहे हैं, जो 'मरियम-उज़-ज़मानी का मकबरा' के नाम से जाना जाता है.
एक बेटे ने अपनी मां के लिए ये मकबरा बनवाया. आइए जानते हैं मरियम-उज़-ज़मानी मकबरे के बारे में..
आपने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी के बारे में तो सुना ही होगा. क्या आप जानते हैं जोधा बाई को ही मरियम-उज़-ज़मानी कहा जाता था.
ऐसा इसलिए क्योंकि पहले जमाने में मरियम-उज़-ज़मानी उस महिला को कहते थे, जो बादशाहों को संतान दिया करती थीं.
अकबर को पहली संतान देने वाली जोधा बेगम थीं. इसलिए उन्हें मरियम-उज़-ज़मानी जोधा बेगम के नाम से भी जाना जाता है.
जोधा बाई का जन्म सन 1542 में एक हिन्दू राजवंशी राजकुमारी थीं. उनके पिता आमेर रियासत के राजा भारमल थे.
जोधा और अकबर के निकाह को लेकर कहा जाता है कि उनका निकाह एक राजनीतिक समझौता था.
मरियम-उज़-ज़मानी' का मकबरा परंपरागत रूप से राजकुमार सलीम (बाद के सम्राट जहांगीर) ने अपनी मां यानि मरियम-उज़-ज़मानी जोधा बेगम के नाम से बनवाया था.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जोधा बेगम का निधन 1623 में हुआ था.जोधा बाई का मकबरा मुगल काल की सबसे महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है.
वर्तमान समय में मरियम-उज़-ज़मानी का मकबरा आगरा के सिकंदरा में स्थित है.
जहांगीर ने सत्ता संभालने के बाद मरियम-उज़-ज़मानी के मकबरे का निर्माण करवाया था.इस मकबरे की खूबसूरती देखते ही बनती है.
इस मकबरे को बनने में पूर 4 साल लगे थे और ये साल 1627 में बनकर पूरा तैयार हो गया था.
इस मकबरे की वास्तुकला काफी रोचक और खूबसूरत है. इस मकबरे का निर्माण बाग के बीच में किया गया है
इसकी दीवारों के भीतरी भाग को कुरान के शिलालेखों से भी उकेरा गया है. सुंदर और रुचिपूर्ण पुष्प डिजाइनों से भी सजाया गया है.
इसके अंदर जोधा बेगम की समाधि भी बनाई गई है, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। हालांकि, ये मुगल वास्तुकला का बिना गुंबद के बना एक खूबसूरत नमूना है।
मुगलकालीन पात्रों की यह कहानी मान्यताओं और इतिहासकारों की पुस्तकों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.