लकड़ी पर की जाने वाली नक्काशी को काष्ठ शिल्प कला कहा जाता है. भारत में इस कला का इतिहास मुग़ल काल तक जाता है.
उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले का नगीना शहर भी लकड़ी पर नक्काशी की कला के लिए जाना जाता है. यहां रोजमर्रा की चीज़ों से लेकर अलंकृत वस्तुओं तक में यह कला देखने को मिलती है.
इनमें चारपाई, लकड़ी की ज्वैलरी, शृंगार केस, छड़ी, घड़ी, स्टिक, लकड़ी के पैरों के साथ एक रस्सी बिस्तर, बड़ी स्क्रीन, लैंप, और आभूषण बक्से जैसी आदी कई चीज़ें शामिल हैं.
नगीना में तैयार की जाने वाली वस्तुएं दुनियाभर में निर्यात की जाती है. नगीना में तैयार होने वाली वस्तुओं पर नक्काशी, राजस्थानी चित्रकला और नगीना के पेचीदा जाली वाले हुनर का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वदेशी खिलौनों का बाजार बढ़ाने की अपील के बाद नगीना के खिलौना उद्योग को भी इस योजना में शामिल किया गया है. अब इन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है.
बाजार में चीन के खिलौनों की भरमार होने की वजह से 400 करोड़ के काष्ठकला के कारोबार में लकड़ी के खिलौनों का बाजार 50 लाख से भी कम है.
सरकरा का कहना है कि अब इन खिलौनों को बड़े स्तर पर बनाकर बाजार उपलब्ध कराया जाएगा. शासन की मंशा है कि लकड़ी के खिलौनों के जिले के कारोबार को 50 लाख से बढ़ाकर करोड़ों रुपये में लेकर जाया जाए.
नगीना में बनने वाले लकड़ी के खिलौनों के नाम पर आमतौर पर दिमाग में घोड़े, हाथी आदि की तस्वीर आती है, लेकिन यह पुराने जमाने की बात हो गई है.
धीरे- धीरे नगीना के लकड़ी के खिलौने आधुनिक भी हो रहे हैं. कई तरह के खिलौनों में मशीन भी फीट होती है. यह खिलौने चाबी से भी चलते हैं.
लकड़ी के खिलौने हाथ की कारीगरी के सबसे सुंदर नमूने होते हैं. लकड़ी के खिलौनों पर हाथ से सुंदर नक्काशी भी की जाती है. यह केवल खेलने के ही नहीं बल्कि घर में सजावट के हिसाब से भी बहुत सुंदर होते हैं.