पशुओं की जनगणना के अनुसार, वर्ष 2012 में 1 करोड़ 71 लाख के मुकाबले गली के कुत्तों की तादाद 2019 तक घटकर 1 करोड़ 53 लाख रह गई है.
उत्तर प्रदेश की बात करें तो गली के कुत्तों की संख्या 41 लाख 80 हजार के मुकाबले आधी घटकर 20 लाख 59 हजार के करीब रह गई है.
उत्तराखंड में कुत्तों की संख्या 47985 के मुकाबले दोगुना बढ़कर 84459 तक पहुंच गई है.
ओडिशा में आवारा कुत्तों की संख्या 2012 में 8.62 लाख के मुकाबले 2019 तक 17 लाख 34 हजार से ज्यादा है. एक हजार इंसानों की आबादी पर करीब 40 आवारा कुत्ते हैं.
एक हजार की आबादी पर आवारा कुत्तों के अनुपात की बात करें तो यूपी में यह अनुपात 9.2 है, जबकि उत्तराखंड में यह 7.6 है.
मणिपुर ऐसा राज्य है, जहां आवारा कुत्तों की संख्या शून्य है. केंद्रशासित प्रदेश दादरा नगर हवेली और लक्षद्वीप का भी यही हाल है.
मध्य प्रदेश में एक हजार पर 12 के अनुपात के साथ कुत्तों की आबादी 10 लाख और राजस्थान में 16.5 के अनुपात के हिसाब से 12.75 लाख के करीब आवारा कुत्ते हैं.
पंजाब और हिमाचल में एक हजार की आबादी पर करीब 10 कुत्ते हैं. दिल्ली में प्रति एक हजार व्यक्तियों में महज तीन गली के कुत्ते हैं.
पहाड़ी राज्यों की बात करें तो जम्मू-कश्मीर में एक हजार इंसानों की आबादी पर 23 और सिक्किम में यह अनुपात 16 का है.
गोवा में एक हजार की आबादी पर 18 और केरल में 8 कुत्ते हैं. जबकि पूरे देश में औसतन यह अनुपात 11 का है.
देश में हर साल कुत्तों के काटने से मौतों की संख्या 20 हजार है. इसमें सबसे बड़ी वजह रेबीज है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार,वर्ष 2019 में 72.77 लाख, 2020 में 46 लाख से ज्यादा और 2021 में 17 लाख से ज्यादा कुत्तों के हमले मामले दर्ज किए हैं.
सरकार ने पिटबुल, रॉटविलर, मास्टिफ, बोअरबेल, वुल्फ डॉग, अमेरिकी बुलडॉग जैसे खूंखार कुत्तों के पालने पर देश में रोक लगा दी है.
देश में करोड़ों आवारा कुत्तों को लेकर कोई नियम नहीं है. स्ट्रीट डॉग्स की आबादी को नसबंदी से बढ़ने से रोका जा रहा है. लेकिन मांसाहार से वो खूंखार हो रहे हैं.