पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने से पितृ बेहद प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है. धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद प्रेत योनी से बचाने के लिए पितृ तर्पण का बहुत महत्व है. सनातन धर्म में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) को काफी महत्ता दी गई है. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान गुजर चुके पूर्वज कौवे बनकर धरती पर आते हैं और अपने परिजनों से मिलते हैं.
शास्त्रों के मुताबिक पितरों के लिए पिंडदान (Pind Daan) करने का काम घर के बेटे या पुरुषों को करना चाहिए.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आत्मा की तृप्ति के लिए सबसे बड़ा पुत्र अपने पिता और अपने वंशज का श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण करता है. पितृऋण से छुटकारा पाने के लिए भी बेटों का पिंडदान करना जरूरी होता है लेकिन अगर किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं, तो ऐसे में परिवार पुत्री, पत्नी और बहू अपने पिता के श्राद्ध और पिंड का दान कर सकती हैं.
गरुड़ पुराण के अनुसार, कुछ विशेष स्थिति में महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं. इस लेख में जानते हैं कि इस पर धर्म शास्त्र क्या कहते हैं.
‘पिंड’ शब्द का अर्थ है किसी वस्तु का गोलाकार रूप. प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड ही कहते है. पिण्ड चावल, जौ के आटे, काले तिल और घी से बना गोल आकार का होता है जिसका दान किया जाता है. इसको ही पिंडदान कहते हैं.
धर्म शास्त्र के अनुसार यदि किसी के घर में बेटा न हो तो बेटियों को भी यह सब करने का अधिकार है. हालांकि बेटियों के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना उनके लिए जरूरी होता है.
पुत्र न होने के बावजूद महिलाएं सच्चे मन से पितरों का पिंडदान करती हैं तो पितरों का आशीर्वाद जरूर मिलता है.
पिंडदान के दौरान अगर घर के पुरुष किसी कारणवश वहां मौजूद नहीं हैं तो इस स्थिति में भी महिलाएं श्राद्ध या पिंडदान कर सकती हैं
पिंडदान के लिए सुबह 11.30 से दोपहर 12.30 तक का समय अच्छा रहता है. इसके लिए जौ के आटे या खोये से पिंड बनाकर पके हुए चावल, दूध, शक्कर, शहद और घी को मिलाकर पिंडों का निर्माण करें.
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके फूल, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, तिल, जौ और दही से पिंड का पूजन करें. पिंडदान करने के बाद पितरों की अराधना करें. इसके बाद पिंड को उठाकर जल में प्रवाहित कर दें. ब्राह्मण भोजन कराएं. पंचबलि भोग निकालें उसके बाद ही घर परिवार के लोग खाना खाएं.
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