ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया--- जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद्दुआ दी--- तेरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुंचे
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे--- ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवां मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे --- मैं हूं दर्द-ए-इश्क़ से घायल, मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
कैसे कह दूं कि मुलाक़ात नहीं होती --- रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई ---- दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई
उन्हें अपने दिल की ख़बरें मेरे दिल से मिल रही हैं ----- मैं जो उन से रूठ जाऊं तो पयाम तक न पहुंचे
उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद--- वक़्त कितना क़ीमती है आज कल
क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाया था हमें--- खुल गई आंख तो ताबीर पे रोना आया
काफ़ी है मेरे दिल की तसल्ली को यही बात-- आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया
अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तूने दिया साथ --- दुनिया में कोई दोस्त मेरे काम तो आया
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे- बेगर्ज बना चुकी है बहुत ये ज़िंदगी मुझे
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया - जाने क्यूं आज तेरे नाम पे रोना आया