कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई, लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई ख़ुदा का नाम चलता, न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है नई दुनिया के रिंदों में ख़ुदा का नाम चलता
कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो तबीअत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती गुलशन हो निगाहों में ... उन्हें अपने दिल की ख़बरें मेरे दिल से मिल रही हैं मैं जो उनसे रूठ जाऊं तो पयाम तक न पहुंचे
गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना दम-भर की इनायत को मोहब्बत न समझना
माना वो मुझे अपनी निगाहों से गिरा दें लेकिन मेरे एहसास को ठुकरा नहीं सकते
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है
काँटों से गुज़र जाता हूँ काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ
काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया
कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई