भगवान श्रीकृष्ण को जाम्बवंत से स्यमंतक मणि के लिए नहीं, बल्कि खुद पर लगे मणि चोरी के आरोप को असिद्ध करने के लिए युद्ध करना पड़ा था.
ये मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी और उन्हें ये मणि सूर्यदेव ने दी थी. सत्राजित ने ये मणि अपने देवघर में रखी थी.
वहां से वो मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित आखेट के लिए चला गया. जंगल में उसे और उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया और मणि अपने पास रख ली.
सिंह के पास मणि देखकर जाम्बवंत ने उसे मारकर मणि ले ली और अपनी गुफा में चले गए. जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी.
सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का आरोप लगा दिया. तब श्रीकृष्ण इस मणि को खोजने के लिए जंगल में निकल पड़े.
मणि खोजते-खोजते श्रीकृष्ण जाम्बवंत की गुफा तक पहुंचे. वहां उन्होंने वो मणि देखी. जाम्बवंत ने उसे देने से इनकार कर दिया.
तब श्रीकृष्ण को मणि के लिए जाम्बवंत से युद्ध करना पड़ा. जाम्बवंत को विश्वास नहीं था कि कोई उन्हें हरा सकता है.
बाद में जब युद्ध में जाम्बवंत हारने लगे तब सहायता के लिए अपने आराध्यदेव प्रभु श्रीराम को पुकारने लगे. फिर श्रीकृष्ण को अपने राम स्वरूप में आना पड़ा.
इसके बाद जाम्बवंत ने उनसे क्षमा मांगते हुए समर्पण कर दिया और उन्होंने मणि भी दे दी.
जाम्बवंत ने भगवान श्रीकृष्ण से अपनी पुत्री से विवाह करने के लिए निवेदन किया. जिसे श्रीकृष्ण ने स्वीकार कर लिया.
जाम्बवती और श्रीकृष्ण के महाप्रतापी पुत्र साम्ब का जन्म हुआ, जो कृष्ण कुल के विनाश का कारण बना.
लोककथाओं की माने तो श्रीकृष्ण ने मणि को सत्राजित को नहीं दी और इस पवित्र मणि को धरोहर के रूप में रखने के लिए अक्रूरजी को वो मणि दे दी.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.