एक दिन भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अर्जुन अकेले वन में विहार करने गए.
घूमते-घूमते अर्जुन दक्षिण दिशा की ओर चले गए और दोपहर को धनुषकोटि में पहुंचकर स्नान करने की तैयारी करने लगे.
अर्जुन ने हनुमान जी से पूछा कि वे कौन हैं उनका नाम क्या है, और वो यहां क्या कर रहे हैं.
हनुमान जी ने बताया कि वे वही हनुमान हैं जिन्होंने राम के प्रताप से समुद्र पर सौ योजन विस्तृत सेतु पार कर दिया था.
अर्जुन ने उपहास करते हुए कहा कि राम तो पराक्रमी थे वे अपने बाणों से भी तो समुद्र पर पुल बना सकते थे.
हनुमान जी ने समझाया कि बड़े वानरों के भार से बाणों का सेतु डूब जाता, इसलिए उन्होंने ऐसा नहीं किया.
अर्जुन ने कहा कि वे बाणों का पुल बनाकर दिखाएंगे जो हनुमानजी के भार से नहीं टूटेगा और टूट गया तो वो खुद को अग्नि में भष्म कर लेंगे.
हनुमान जी ने अपना आकार बड़ा किया और जैसे ही अपना पैर बाणों के पुल पर रखा पुल टूट गया, अर्जुन शर्त हार गए.
शर्त हारकर अर्जुन अपने वचन अनुसार चिता पर चढ़ने लगे जिसे देखकर हनुमान जी ने दुखी होकर अपने ईष्ट को याद किया.
इससे पहले कि अर्जुन अपने आपको चिता में जलाकर भष्म करते श्रीकृष्ण वहां आ गए और उन्होंने समझाबुझाकर अर्जुन रोक लिया.
हनुमान जी भी समझ गए कि ईष्ट को याद करने पर आए श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं भगवान श्रीराम का ही रूप हैं.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके काल्पनिक चित्रण का ZEE UP/UK हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.