स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2024 में अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी और इसके सिंबल का ऐलान कर दिया है.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1980 के दशक से राजनीति शुरू की. वह प्रयागराज इलाहाबाद में युवा लोकदल के संयोजक के रूप में राजनीतिक करियर की शुरुआत की.1989 से 1991 तक लोक दल के मुख्य महासचिव रहे.
स्वामी प्रसाद मौर्य 2022 में भाजपा छोड़कर सपा का दामन पकड़. समाजवादी पार्टी ने फाजिलनगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने घनिष्ठ रिश्तों के बावजूद 2009 में अपनी बेटी संघमित्रा मौर्य को उनके खिलाफ मैनपुरी लोकसभा चुनाव मैदान में उतार दिया. संघमित्रा मौर्य अभी बदायूं लोकसभा सीट से सांसद हैं.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब 2016 में 20 सालों के साथ के बाद बीएसपी छोड़ी तो उन्हें मुलायम ने खुला ऑफर दिया, लेकिन सत्ता की लहर भांपते हुए वो बीजेपी में शामिल हुए. बीजेपी सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया.
स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे अशोक मौर्य और बहू भी राजनीति में हैं. अशोक मौर्य ऊंचाहार विधानसभा सीट से दो बार बेहद कम वोटों से चुनाव हार गए.
स्वामी प्रसाद मौर्य 2012 से 2017 तक सपा सरकार के दौरान बसपा विधायक दल के नेता भी रहे. नेता विपक्ष के तौर पर उनकी मुलायम से सियासी नजदीकियां मायावती को नागवार गुजरीं.
स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 विधानसभा चुनाव से पहले बसपा से 20 साल का साथ छोड़ दिया. भाजपा के टिकट पर पडरौना से उतरे और जीत हासिल की.
स्वामी प्रसाद मौर्य 1996 में बसपा के टिकट पर पहली बार डलमऊ विधानसभा सीट से विधायक बने.वो पांच बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं.
1991 से 1995 तक स्वामी प्रसाद मौर्य जनता दल के प्रदेश महासचिव रहे.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस पर विवादित बयान दिया था. रामचरित मानस को पिछड़ों और दलितों को अपमानित करने वाला ग्रंथ कहा था.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पर टिकट के बदले पैसे लेने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी.