प्रयागराज का पाठा कहे जाने वाले शंकरगढ़ इलाके में बसा एक गांव सपेरों का है जहां के लोगों का पुश्तैनी काम सांप पालना है.
हर परिवार के मुखिया समेत हर एक पुरुष सदस्यों के पीछे एक सांप पालने का सिलसिला चला आ रहा है. यानी घर में जितने पुरुष हैं घर में उतने सांप पाले जाएंगे.
बीन बजाने में माहिर इस गांव के सपेरों के साथ ही सांप रहते हैं. वहीं किसी घर में सांप निकले पर सूचना पाकर सपेरे उन्हें पकड़ने पहुंच जाते हैं.
कपारी में बच्चे सपोले के साथ ही घूमते फिरते हैं. सपोले सांप बनेते हैं और गांव के बच्चे भी बड़े हो रहे होते हैं.
कोबरा, करिया, वाइपर, रेटल स्नैक से लेकर करैत प्रजातियों के सांप और विषखोपड़ा, गोहटा जैसे कई घातक इस गांव में बेधड़क पाले जाते हैं.
कपारी के साथ सपेरों और मदारियों की पांच और बस्ती हैं जहां के सपेरे पश्चिम बंगाल से करीब 100 साल पहले संगम स्नान के आए और यहीं रह गए.
कपारी के अलावा गुडिया तालाब, जज्जी का पुरवा से लेकर बेमरा, कंचनपुर बस्तियों में कुनबा का कुनबा सपेरा परिवार रहते हैं.
इस गांव में युवक-युवतियों का विवाह भी दूसरे कुनबे में नहीं बल्कि सपेरों में ही होता है. दहेज में सांप भी दिए जाते हैं.
नाग पंचमी इन गांवों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सांपों को चावल व फूल चढ़ाए जाते हैं. महाआरती की जाती है और महिलाएं नाग-नागि नृत्य भी करती हैं.