महाभारत में जब मामा की बात होती है तो हर किसी को शकुनि का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है. लेकिन शकुनि के अलावा भी महाभारत में एक और मामा था, जिसने कौरवों की सेना में रहते हुए भी पांडवों की मदद की थी.
शल्य पांडवों के मामा थे. लेकिन कौरव भी उनको मामा ही मानते थे. वह पांडु की पत्नी माद्री के भाई और नकुल सहदेव के सगे मामा थे.
शल्य के पास विशाल सेना थी. जब युद्ध की घोषणा हुई तो सबको पता था कि वह पांडवों की ओर से लड़ाई लड़ेंगे.
एक दिन जब शल्य अपने भांजों से मिलने जब सेना लेकर हस्तिनापुर निकले तो रास्ते में उनकी खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था की गई.
शल्य को लगा कि यह इंतजाम युधिष्ठिर ने किया है. वह इसके लिए पुरस्कार देने को लालायित हो गए. लेकिन तभी दुर्योधन ने सामने आकर कहा कि यह मैंने आपके लिए किया है.
शल्य को दुर्योधन का ये व्यवहार पसंद आया. वह भावनाओं में बहकर कहा, कि मांगो आज तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते हो. मैं तुम्हारी सेवा से खुश हूं.
दुर्योधन ने कहा, 'आप अपनी सेना के साथ युद्ध में मेरा साथ दें और मेरी सेना का संचालन करें. ' यह सुनकर शल्य कुछ देर के लिए चुप रह गए. चूंकि वे वचन से बंधे हुए थे.
शल्य को दुर्योधन का यह प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा. लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि युद्ध में वह उनका साथ देंगे लेकिन जुबान पर उनका ही अधिकार होगा.
शल्य कर्ण के सारथी बने. वे जुबान से कर्ण का मनोबल गिराते रहते थे. हर दिन युद्ध समाप्ति के बाद वे जब शिविर में होते थे तब भी कौरवों को हतोत्साहित करने का कार्य करते रहते थे.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके काल्पनिक चित्रण का जी यूपी-यूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.