पुराने समय में महल और कोठे हुआ करते थे जहां पर रहने वाली महिलाओं को तवायफ कहा जाता था और ये महिलाएं नाचने गाने का काम करती थीं.
इन तवायफों का काम बादशाहों, नवाबों और अमीर लोगों का मनोरंजन करना हुआ करता था.
ऐसी ही एक तवायफ थी जानकी बाई जो बला की खूबसूरत थी और बेहतरीन गाती थी. लोगों के दिलों पर वो राज किया करती थी.
उन तवायफ के जीवन पर साहित्य की प्रोफेसर नीलम सरन गौर ने एक किताब लिखी,
1880 वाराणसी में जन्मी जानकी का पिता कुछ दिन बाद जानकी और उसकी मां को छोड़ चला गया.
जानकी और उसकी मां मानकी देवी को इलाहाबाद के एक कोठे पर कुछ दिन बाद बेच दिया गया.
मानकी तो उस दुनिया की मालकिन बन बैठी पर बेटी जानकी को उसने शास्त्रीय संगीत सिखाया ताकि इस दुनिया से वो दूर रहे.
जानकी जब 12 साल की थी तब एक पुलिसवाले ने जानकी के साथ संबंध बनाने की कोशिश की पर नाकाम रहा.
पुलिसवाला इस बात से इतना गुस्सा हुआ कि जानकी के साथ मारपीट तो की ही बल्कि उसके खूबसूरत चेहरे पर चाकू से वार भी किए
जानकी बच तो गई लेकिन उसके चेहरे पर किए चाकू से 56 वार ने उसके चेहरे पर दाग दे दिए. तब से जानकी को छप्पन छुरी कहा जाने लगा.
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