महाभारत में पांडवों के भाई होने के बाद भी कौरवों का साथ दिया था. युवराज होने के बाद भी कर्ण को जीवन भर सूत पुत्र होने का दंश झेलना पड़ा.
कर्ण बहुत बड़े योद्धा तो थे ही इसके साथ ही वो बहुत बड़े दानवीर थे.
इतने बहादुर और दानवीर होने के बाद भी हर जगह पर उनका अपमान हुआ. उनके भाईयों ने भी उनका अपमान किया.
पौराणिक कथा और शास्त्रों की मानें तो कर्ण का जन्म होना और जीवनभर यातनाएं भोगना भी उसके पूर्व जन्म का फल था.
दरअसल सतयुग में नर और नारायण ऋषि जो कि श्रीहरि के अंशावतार थे, वे तपस्या कर रहे थे.
दुरदु्म्भ नाम के एक राक्षस को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता है जिसने एक हजार साल तप किया हो.
साथ ही उसे सूर्य ने 100 कवचों और दिव्य कुंडल का रक्षण दिया था. जो भी उसका एक कवच भी तोड़ता उसकी मृत्यु हो जाती.
इधर दुरदुम्भ के अत्याचार बढ़े तो देवताओं ने श्रीहरि से बचाव की प्रार्थना की. उन्होंने सभी को नर-नारायण के पास भेज दिया. नर-नारायण ने देवताओं को अभय दिया.
जब दुरदुम्भ को भी पता चला कि नर-नारायण एक हजार साल से तपस्या कर रहे हैं तो उसे अपनी पराजय दिखी.
उसने इन दोनों ऋषिय़ों के वध के लिए आक्रमण कर दिया. पहले नर ने युद्ध किया, नारायण तपस्या करते रहे.
कई दिन तक युद्ध के बाद नर ने राक्षस की कवच को तोड़ दिया और नर की भी मृत्यु हो गई.
इस पर नारायण उठे और फिर से नर को जीवित कर दिया. अब नर तपस्या करने लगे और नारायण युद्ध.
इस तरह लगातार युद्ध चलता रहा.नर-नारायण एक-एक करके युद्ध करते रहे, कवच तोड़ते रहे और एक-दूसरे को जीवित करते रहे.
इस तरह एक-एक कर जब 99 कवच टूट गए.अगले जन्म में वह कर्ण के रूप में कवच-कुंडल के साथ पैदा हुआ.
स्पष्ट कर दें कि यह AI द्वारा निर्मित महज काल्पनिक फोटो हैं, जिनको बॉट ने कमांड के आधार पर तैयार किया है. यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है.