महमूद गजनवी की गिनती दुनिया के सबसे क्रूर शासकों में होती है. सैयद सालार मसूद गाजी इसी गजनवी का भांजा था और उसकी सेना का सेनापति भी था.
1001 ई में दोनों ने भारत की तरफ रुख किया और एक-एक कर भारत की हिंदू आस्था पर हमला किया.
इन्होंने भारत के प्राचीन मंदिर पर हमले किए.मंदिर से लेकर हर जगह खजानों की लूटा, जबरन हिंदुओं का बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन कराया.
कोई भी इनके रास्ते में आया तो उस पर हमला कर रियासतें खत्म कर दीं.
सैयद सालार मसूद गाजी का सबसे बड़ा हमला सोमनाथ मंदिर काठियावाड़ पर था.
1026 ई में हुए इस हमले को हिंदुओं की आस्था पर सबसे बड़ी चोट माना जाता है.
भारत पर हमले के दौरान 1033 ई. में सैयद सालार मसूद गाजी बहराइच तक पहुंच गया था.
बहराइच,लखनऊ समेत आस-पास के राजाओं को ललकारा और लूट की कोशिश की. इस दौरान उसका सामना महाराजा सुहेलदेव राजभर से हुआ.
इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे. जिन्हें एक महान योद्धा के तौर पर देखा जाता है.
महाराजा सुहेलदेव राजभर ने उस समय तक 21 पासी राजाओं के साथ मिलकर गठबंधन में एक संयुक्त सेना तैयार कर ली थी.
बहराइच में हुए भीषण युद्ध में महाराजा सुहेलदेव राजभर की सेना ने सालार मसूद गाजी को करारी शिकस्त दी.
हार के साथ ही युद्ध में सालार मसूद गाजी को जान भी गंवानी पड़ी. इसके बाद उसकी सेना ने बहराइच में ही उसको दफना दिया.
काफी समय के बाद दिल्ली के सुल्तानों के दौर में यहां मजार बनी और इसे दरगाह के रूप दे दिया गया.
इतिहासकारों के मताबिक महाराजा सुहेलदेव और मसूद गाजी का इतिहास 1 हजार साल पुराना है.
मुगलकालीन पात्रों की यह कहानी मान्यताओं और इतिहासकारों की पुस्तकों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.