UP Police: देश की सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में इस समय कोई स्थायी डीजीपी नहीं है. हैरान करने वाली बात ये कि पिछले ढाई साल से जो भी अधिकारी नियुक्त किए गए सभी को कार्यभार अस्थाई रूप से ही सौंपा गया. मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी जा पहुंचा है. अदालत से शिकायत की गई है कि सरकारों की ओर से शीर्ष अदालत के दिशा-निर्देशों की ही अवहेलना हो रही है. अब सवाल ये कि आखिर यूपी को कोई स्थायी डीजीपी क्यों नहीं मिल पा रहा है?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मुकुल गोयल को हटाने पर UPSC ने पूछे थे सवाल 


आपको बता दें कि साल 2022 के मई में योगी सरकार ने उस समय के डीजीपी मुकुल गोयल को हटा दिया था. कारण यह दिया गया कि गोयल द्वारा शासकीय कार्यों की अवहेलना की गई और वे अपने काम में रुचि नहीं लेते हैं. इसके बाद उनके पद पर अस्थायी तौर पर डीएस चौहान को लाया गया. बाद में सरकार की ओर से यूपीएससी को को नए डीजीपी के लिए प्रस्ताव भेजे गए जिसमें कि अफसरों के नाम सरकार की ओर से दिए गए. हालांकि यूपीएससी ने योगी सरकार से मुकुल गोयल को हटाने का कारण पूछा. इसके बाद न तो सरकार ने इसका जवाब देना सही समझा न ही खुद से स्थायी डीजीपी के लिए मांग की.


दरअसल सरकार खुद मुकुल गोयल को हटाने का जवाब देने से बच रही है. आपको बता दें कि इस समय 1990 बैच के आईपीएस प्रशांत कुमार यूपी के अस्थायी डीजीपी हैं. माना जा रहा है कि अगर सरकार यूपीएससी को प्रस्ताव भेजती है तो उसमें प्रशांत कुमार का नाम नहीं होगा.


ढाई साल में कौन-कौन रहा अस्थाई डीजीपी 
- 1988 बैच के आईपीएस डीएस चौहान को 13 मई 2022 से 31 मार्च 2023
- 1988 बैच के आरके विश्वकर्मा को 1 अप्रैल 2023 से 31 मई 2023
- 1988 बैच के आईपीएस विजय कुमार को 1 जून से 31 जनवरी 2024
-  डीजीपी प्रशांत कुमार को 1 फरवरी 2024 में नियुक्त किया गया 


डीजीपी की नियुक्ति कैसे होती है


डीजीपी की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार एडीजी रैंक से ऊपर के सभी आईपीएस अधिकारियों के नाम UPSC को भेजती है, जिनका कार्यकाल कम से कम 6 महीने का बचा हुआ होता है और वह 30 वर्ष आईपीएस रहे होते हैं. अगर आज की तारीख में योगी सरकार प्रस्ताव भेजेगी तो उसमें 12 वरिष्ठ आईपीएस के नाम होंगे. इसके बाद यूपीएससी तीन नाम बताएगी.


माना जाता है कि राज्य में स्थायी डीजीपी का चयन राजनीति से अछूता नहीं है. ऐसा नहीं है कि यूपी में ही ऐसा हो रहा है बल्कि कई राज्य सरकारें डीजीपी अपनी पसंद का रखना चाहती हैं इसलिए वह कोर्ट के निर्देशों को नजरअंदाज करती हैं.