योगी इफेक्ट : 105 साल में पहली बार बंद रही `टुंडे कबाबी` की दुकान, नॉनवेज प्रेमी अब नहीं ले पाएंगे `बड़े के कबाब` का स्वाद
शायद ही कोई ऐसा नॉनवेज प्रेमी हो जो `टुंडे कबाबी` की दुकान से परिचित न हो. खबर है कि दुनियाभर में मशहूर लखनऊ के 105 साल पुराने `टुंडे कबाबी` ने अपनी खास डिश `बड़े के कबाब` बेचना बंद कर दिया है। इतना ही नहीं, गोश्त की आपूर्ति नहीं होने की वजह से बीते बुधवार को उसे पहली बार अपनी दुकान बंद रखनी पड़ी. टुंडे कबाबी में बूचड़खानों से आए हर रोज 25 किलो भैंस के मांस का इस्तेमाल होता था. कर्फ्यू या प्राकृतिक आपदा को छोड़ दें तो पहली बार बुधवार को टुंडे कबाबी की दुकान बंद रही.
नई दिल्ली/लखनऊ : शायद ही कोई ऐसा नॉनवेज प्रेमी हो जो 'टुंडे कबाबी' की दुकान से परिचित न हो. खबर है कि दुनियाभर में मशहूर लखनऊ के 105 साल पुराने 'टुंडे कबाबी' ने अपनी खास डिश 'बड़े के कबाब' बेचना बंद कर दिया है। इतना ही नहीं, गोश्त की आपूर्ति नहीं होने की वजह से बीते बुधवार को उसे पहली बार अपनी दुकान बंद रखनी पड़ी. टुंडे कबाबी में बूचड़खानों से आए हर रोज 25 किलो भैंस के मांस का इस्तेमाल होता था. कर्फ्यू या प्राकृतिक आपदा को छोड़ दें तो पहली बार बुधवार को टुंडे कबाबी की दुकान बंद रही.
मटन और बीफ की आपूर्ति में भारी कमी
दरअसल, उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद अवैध बूचड़खाने बंद कराने का काम जोरों पर है. इससे मीट और बीफ दोनों की आपूर्ति में भारी गिरावट दर्ज की गयी है. बुधवार को माल खत्म होने के कारण बंद हुई दुकान की वजह से इस दुकान के कबाब पसंद करने वालों को निराशा हाथ लगी। हालांकि कुछ समय के बाद दुकान फिर से खुल गई.
26 हजार करोड़ से अधिक का है मीट कारोबार
ऑल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन की मानें तो देश में सालाना करीब 26 हजार 685 करोड़ रुपए का मीट का कारोबार होता है. इसमें करीब 50 फीसदी योगदान उत्तर प्रदेश का है. यहां मीट कारोबार पर रोक लगने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 25 लाख लोगों पर असर पड़ सकता है.
'लाइसेंसी बूचड़खानों को बंद न किया जाए'
टुंडे कबाब के मालिक की मानें तो बूचड़खाने बंद होने की वजह से मटन और मीट की भारी कमी हो गयी है, इस वजह से दुकान पर अब सिर्फ चिकन की ही बिक्री हो पा रही है. उन्होंने यह भी बताया कि हालांकि अवैध बूचड़खानों को बंद करने का मुख्यमंत्री का फैसला बहुत अच्छा है, लेकिन उन्होंने अनुरोध किया कि कानूनी और लाइसेंसी बूचड़खानों पर पाबंदी न लगायी जाए. मालूम हो कि 1905 में लखनऊ के अकबरी गेट इलाके में शुरू हुई इस दुकान का कबाब और पराठा पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है, लेकिन भैंसे के मीट की कमी की वजह से अब इस दुकान पर चिकन के कबाब ही मिल रहे हैं.
कोर्ट जाने की तैयारी में बूचड़खाने वाले
उत्तर प्रदेश के मीट उत्पादकों का कहना है कि अगर सरकार कानूनी तरीके से चल रहे बूचड़खानों को बंद कराती है तो वे इसके खिलाफ अदालत जाएंगे. ऑल इंडिया मीट एंड लाइवस्टॉक एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के एक पदाधिकारी का कहना है कि एक तरफ तो केंद्र ने मीट इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की नीति बना रखी है वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में वही भाजपा सरकार इसे बंद करा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि एसोसिएशन गैरकानूनी बूचड़खाने बंद कराने का समर्थन करता है.