काबिलेतारीफ! विश्व हिंदू परिषद ने 5 हजार दलितों को बनाया मंदिरों का पुजारी
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने शुक्रवार को बताया कि दक्षिण भारत में इस अभियान को बड़ी सफलता मिली है. यहां के राज्यों में दलित पुजारियों की संख्या ज्यादा है.
नई दिल्ली: देश में जातीय भेदभाव मिटाने की दिशा में चल रहे विश्व हिंदू परिषद (VHP) के प्रयास को बड़ी सफलता हासिल हुई है. देश में पांच हजार दलितों को पुजारी (Dalit Priests) बनाने में विहिप सफल हुआ है. विहिप की लगातार कोशिशों से ज्यादातर पुजारी सरकारी देखरेख में संचालित मंदिरों के पैनल में भी शामिल हुए हैं. विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि सामाजिक समरसता की दिशा में यह अभियान लगातार चल रहा है. 'हिंदू मित्र परिवार योजना' और 'एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान-तभी बनेगा भारत महान' की योजना पर भी लगातार काम कर रहा है.
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने शुक्रवार को बताया कि दक्षिण भारत में इस अभियान को बड़ी सफलता मिली है. यहां के राज्यों में दलित पुजारियों की संख्या ज्यादा है. सिर्फ तमिलनाडु (Tamil Nadu) में ही ढाई हजार दलित पुजारी विहिप की कोशिशों से तैयार हुए हैं. आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के मंदिरों में भी दलित पुजारियों की अच्छी-खासी संख्या है. पूरे देश में 5 हजार से अधिक दलित पुजारियों को विहिप ने तैयार किया है. यह संगठन की बड़ी सफलता है.
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दलित पुजारियों को तैयार करने वाले इस अभियान के संचालन के लिए विहिप में दो विभाग काम करते हैं. अर्चक पुरोहित विभाग और सामाजिक समरसता विभाग मिलकर इस पूरे अभियान को चला रहे हैं. धर्म-कर्म में रुचि रखने वाले दलितों को पूरे विधि-विधान से पूजन-अर्चन करने की पद्धति सिखाई जाती है. फिर उन्हें सर्टिफिकेट भी मिलता है.
प्रवक्ता के मुताबिक, दक्षिण भारत के दलित पुजारियों को आंध्र प्रदेश स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) की ओर से प्रमाणपत्र मिला है. यह प्रमाणपत्र धार्मिक कार्यों के संचालन की दीक्षा सफलतापूर्वक हासिल करने के बाद उन्हें मिला है.
विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारियों का कहना है कि वर्ष 1964 में स्थापना के पांच वर्ष बाद से ही संगठन देश से अस्पृश्यता दूर करने की दिशा में काम कर रहा है. कर्नाटक के उडुपी में वर्ष 1969 में हुए धर्म संसद में अस्पृश्यता दूर करने का संकल्प लिया गया था. उस दौरान संतों ने देश को 'न हिन्दू पतितो भवेत' का संदेश दिया था, जिसका मतलब था कि सभी हिंदू भाई-भाई हैं, कोई दलित नहीं है.
दलितों को मुख्यधारा में लाने की कोशिशों के तौर पर 1994 में काशी में हुई धर्म संसद का निमंत्रण डोम राजा को देने विहिप के पदाधिकारी और संत गए थे. उन्होंने डोम राजा के घर प्रसाद भी ग्रहण किया था. विहिप के आमंत्रण पर धर्म संसद में पहुंचे डोम राजा को बीच का आसन देकर माल्यार्पण कर स्वागत किया गया था. नवंबर 1989 को राम मंदिर का शिलान्यास भी विहिप ने दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों कराकर उस समय सामाजिक समरसता का बड़ा संदेश दिया था. राम मंदिर निर्माण के लिए बने ट्रस्ट में भी कामेश्वर चौपाल को जगह दी गई है.
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