इलाहाबाद HC का बड़ा फैसला, खाताधारक की मौत पर नॉमिनी को डिपॉजिट.. लेकिन दावेदारों का हक बरकरार
Account Holder Nominee: नॉमिनी को केवल खाताधारक की मृत्यु के बाद पैसा प्राप्त करने का अधिकार है. लेकिन यह पैसा नॉमिनी की संपत्ति नहीं माना जाएगा, बल्कि इसे कानूनी उत्तराधिकारियों में विभाजित किया जाएगा.
Allahabad HC Verdict: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि अकाउंट होल्डर की मृत्यु के बाद नॉमिनी को बैंक में जमा राशि प्राप्त करने का अधिकार होगा, लेकिन यह धनराशि उत्तराधिकार कानूनों के अधीन रहेगी. यानी नॉमिनी को पैसा मिलेगा, लेकिन अन्य कानूनी वारिस भी इस राशि पर दावा कर सकते हैं. यह फैसला जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनाया.
बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949
असल में लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ता मनोज कुमार शर्मा ने दावा किया था कि वह अपनी दिवंगत मां की फिक्स्ड डिपॉजिट का नॉमिनी है और बैंक से पैसा प्राप्त करने का हकदार है, जैसा कि बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 की धारा 45ZA में बताया गया है. कोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि नॉमिनी को केवल खाताधारक की मृत्यु के बाद पैसा प्राप्त करने का अधिकार है. लेकिन यह पैसा नॉमिनी की संपत्ति नहीं माना जाएगा, बल्कि इसे कानूनी उत्तराधिकारियों में विभाजित किया जाएगा.
वसीयत को चुनौती दी जा रही थी..
रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ता ने बैंक ऑफ बड़ौदा में अपनी मां के फिक्स्ड डिपॉजिट का पैसा पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनकी मां का निधन 8 फरवरी 2020 को हुआ था. हालांकि सिविल जज सीनियर डिवीजन मुरादाबाद ने उनके उत्तराधिकार दावे को इसलिए खारिज कर दिया था क्योंकि उनकी मां की वसीयत को चुनौती दी जा रही थी.
पैसा उनके लिए ट्रस्ट में रखना होगा?
उधर प्रतिवादियों के वकील ने दलील दी कि धारा 45ZA नॉमिनी को पैसा प्राप्त करने का अधिकार देती है, लेकिन यह उत्तराधिकार कानूनों को नहीं बदल सकती. इसलिए अगर नॉमिनी को पैसा दिया भी जाता है, तो उसे कानूनी वारिसों के अधिकार का सम्मान करना होगा और पैसा उनके लिए ट्रस्ट में रखना होगा.
इस पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नॉमिनी को बैंक से पैसा मिलने का अधिकार है, लेकिन वह इसे अपनी संपत्ति नहीं मान सकता. कोर्ट ने बैंक ऑफ बड़ौदा को निर्देश दिया कि तीन हफ्ते के अंदर याचिकाकर्ता को पैसा जारी किया जाए, बशर्ते वह एक शपथ पत्र दायर करे कि यह राशि कानूनी वारिसों के लिए ट्रस्ट में रखी जाएगी और उन्हें कानूनी निर्णय के अनुसार भुगतान किया जाएगा.