Constitution and Hasrat Mohani: स्कूली दिनों में हम भारत के स्वर्णिम इतिहास के बारे में पढ़ते हैं. इस दौरान हम अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने वाले तमाम स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में भी विस्तार से पढ़ते हैं. हमारा देश आज जिस मुकाम पर पहुंचा है, उसमें स्वतंत्रता सेनानियों का सबसे बड़ा हाथ है. आजादी की लड़ाई के दौरान 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा हर तरफ गूंज रहा था. 'इंकलाब जिंदाबाद' का मतलब होता है 'लंबे समय तक के लिए क्रांति' यानी (Long Live Revolution) . इस नारे की धमक आज भी कई आंदोलनों में सुनने को मिल जाती है.


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ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा भगत सिंह (Bhagat Sigh) ने दिया था लेकिन आपको बता दें इस नारे को जन-जन तक पहुंचाने में काम भले ही भगत सिंह ने किया हो लेकिन इस नारे के सबसे पहले मौलाना हसरत मोहनी ने लिखा था. साल 1875 में पैदा हुए मौलाना हसरत मोहनी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से संबंध रखते थे.


आपको बता दें कि मौलाना हसरत मोहानी (Hasrat Mohani) के बचपन का नाम सय्यद फजल-उल-हसन तखल्लुस हसरत था. साल 1921 में मोहनी साहब राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता भी थे और भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल थे जिन्होंने भारत के बंटवारे (Partition of India) का जमकर विरोध किया था. हसरत मोहनी एक उर्दू के कवि और एक सोशल वर्कर भी थे. हसरत मोहानी साहब 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के अहमदाबाद सत्र में भारत की स्वतंत्रता (Independence of India) की घोषणा करने वाले पहले व्यक्ति हैं. 


हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर हसरत मोहानी साल 1907 में अपनी पत्रिका में 'मिस्त्र में ब्रिटानिया की पॉलिसी' लेख की वजह से भी जेल गए थे. उर्दू की कविताएं करने वाले हसरत मोहानी ने कृष्ण भक्ति में भी कई शायरियां लिखी थी. बाल गंगाधर तिलक और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के करीबी माने जाने वाले हसरत मोहानी को साल 1946 में बनी भारतीय संविधान सभा (Constituent Assembly of India) के गठन के दौरान उत्तर प्रदेश से संविधान सभा का सदस्य (Member of the Constituent Assembly from Uttar Pradesh) भी चुना गया.


साल 1921 में हसरत मोहानी के लिखे गए 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे को भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और बटुक दत्ता ने अभिभूत होकर इस्तेमाल किया और देखते ही देखते ये नारा हर स्वतंत्रता सेनानी के जुबान पर चढ़ गया.


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